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शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

बचपन


सूरज, चाँद, बादल और तारे,
कुछ शफ़क, कुछ अँधेरा,
कुछ मिट्टी और कुछ फूल,
सब कुछ एक ही जेब में  रख कर,
नादानी और प्यार मिलायें तो। 
फिर इस बेमतलब जीवन में हम ,
बचपन वाला वो धनुक लाएं तो,   
बचपन की कोई सीमा नहीं है,
उसको अनंत बनाएं तो,  
इस जीवन में क्या नहीं है,
जवानी बुढ़ापा भुला कर,      
खोजने जरा आप जाएँ तो। 
            -अतुल सती 'अक्स'  

मंगलवार, 28 जुलाई 2015

कलाम !!!


"अबुल" परदादा की बेल, 
"पकीर" दादा से होते हुए,
"जेनुलआब्दीन" पिता के कंधे से,
जब आकाश की और पहुंची, 
तो "अब्दुल कलाम" आज, 
आसमान की अनंत शिखर की ओर,
आज़ाद हो गए। 
पर, 
वो बेल यहीं पर खत्म नहीं होती है,
बल्कि वो जिस्म जब सुपुर्दे ख़ाक होगा,
तब उस मीट्टी से अनेक अँकुर निकलेंगे,
उसकी सौंधी मिटटी से तीनों जग महकेंगे,  
गर कुछ खिलौने उस मिटटी से बनेंगे,
तो भी वो बच्चों के हाथों में चमकेंगे,
आसमान तक भी आज फूट फूट कर रोया है,
भारत माँ ने अपना सच्चा सपूत खोया है,
भारत ने आज अपना महा रत्न खोया है,
लेकिन ये मत कहना कि कलाम मर गए,
ऐसा कहा नहीं करते हैं,
सुनो बच्चों!!!
ऐसे गुदड़ी के लाल,
कलाम कभी मरा नहीं करते हैं।
                          - अतुल सती 'अक्स'   

शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

मृत्यु मेरी एक प्रेयसी


हर पल मुस्कुराती हुई दिखती है,
आलिंगन का रोज आग्रह करती,
नृत्य करती, हँसती इठलाती,
बाहें फैलाये मुझे बुलाती,
मुझे वो रोज नृत्य करती सी दिखती है, 
मुझे तो मृत्यु मेरी एक प्रेयसी लगती है।     

मृत्यु पश्चात् ही तो शुरू है जीवन,
एक अनंत नभ में होगा विचरण,
लेखा जोखा, पुण्य पाप,
सब बातों का होगा हिसाब,
मुझे इस जग की हर बात पराई लगती है 
मुझे तो मृत्यु मेरी अपनी, सगी लगती है। 

हर दिन हर पल सम्मुख मेरे,
प्रश्न करे जीवन बड़े गहरे,
रिश्ते नाते, जीवन और मरण,
कौन शैतान, कौन भगवन?
हर एक सवाल का जवाब लगती है,
मुझे तो मृत्यु अंतिम शराब लगती है।

तिलक टोपी पगड़ी क्रॉस वालों का,
हर मजहब की अपनी रंजिशों का,
उनके जूठे,
और झूठे हर एक साजिशों का,
एक एक करके पर्दाफाश करती है,
मुझे तो मृत्यु जीवन का सार लगती है।
                 
                     -अतुल सती 'अक्स'
      


                
  



सोमवार, 6 जुलाई 2015

बचपन

अभी थोड़ी देर ही सही,
बचपन को,
बचपने में ही रहने दो। 
चाँद तारों को तोड़ कर,
अपनी जेबों में इन्हे रखने दो। 

भरने दो अभी कुछ और देर तक,
मनमर्जी के रंग इस आसमान में,
इनकी दुनिया को अभी,
कुछ और देर तो सजने दो।
फिर,
फिर तो ये भी हम जैसे हो जायेंगे, 
ये नादानी कहीं छूट जाएगी पीछे, 
ये भी जल्दी सयाने हो जायेंगे। 
कुछ कागज पढ़ लिख कर,
कुछ कागज कमाने को,
ये भी हम जैसे दीवाने हो जायेंगे। 
अभी थोड़ी देर ही सही,
बचपन को बचपने में ही रहने दो। 
चाँद सितारों को तोड़ कर,
इन्हे अपनी जेबों में रखने दो।