"अबुल" परदादा की बेल,
"पकीर" दादा से होते हुए,
"जेनुलआब्दीन" पिता के कंधे से,
जब आकाश की और पहुंची,
तो "अब्दुल कलाम" आज,
आसमान की अनंत शिखर की ओर,
आज़ाद हो गए।
पर,
वो बेल यहीं पर खत्म नहीं होती है,
बल्कि वो जिस्म जब सुपुर्दे ख़ाक होगा,
तब उस मीट्टी से अनेक अँकुर निकलेंगे,
उसकी सौंधी मिटटी से तीनों जग महकेंगे,
गर कुछ खिलौने उस मिटटी से बनेंगे,
तो भी वो बच्चों के हाथों में चमकेंगे,
आसमान तक भी आज फूट फूट कर रोया है,
भारत माँ ने अपना सच्चा सपूत खोया है,
भारत ने आज अपना महा रत्न खोया है,
लेकिन ये मत कहना कि कलाम मर गए,
ऐसा कहा नहीं करते हैं,
सुनो बच्चों!!!
ऐसे गुदड़ी के लाल,
कलाम कभी मरा नहीं करते हैं।
- अतुल सती 'अक्स'
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