अभी तक इस ब्लॉग को देखने वालों की संख्या: इनमे से एक आप हैं। धन्यवाद आपका।

यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 8 जनवरी 2017

यक्ष प्रश्न: नारीत्व का पौरुष से || अक्स की बातें...






जब सृष्टि के हैं हम भाग बराबर, फिर क्यों तुम्हारा मुझपर अधिकार रहा?
और हिस्से में सदा ही तुम्हारे सम्मान?, और मेरे हिस्से बस तिरस्कार रहा।   
क्यों इतिहास के हर पन्ने पर पौरुष बस खामोश रहा?
क्यों इतिहास के हर पन्ने पर पौरुष बस खामोश रहा?

जब वस्तु समझ, मेरा दांव लगा और चीरहरण, सरे आम हुआ, 
जब भीख समझ, मुझे बाँट दिया और जीवन भर अपमान हुआ।   
जब आग तन झुलसा न सकी, पर मन भीतर भीतर झुलस गया,
और जब सुनी सुनायी बातों पर ही, मेरे मातृत्व को वनवास मिला। 

गर ये ही सब मैं, तुम संग करती, तो तुम क्या करते ?
उत्तर दो !!! 
क्यों इतिहास के हर पन्ने पर, पौरुष बस खामोश रहा?

जब चौदह बरस, बस खड़े खड़े, मैंने तुम्हारा इंतज़ार किया,
और चारों नववधुओं में, सिर्फ मुझे विछोह? मेरा क्या अपराध रहा?
कह के जाते, दिन में जाते, क्यों सारे वचनों को तोड़ दिया?
और जग को जगाने हेतु तुमने, मुझको सोते में ही छोड़ दिया?


गर ये ही सब मैं, तुम संग करती, तो तुम क्या करते ?
उत्तर दो !!! 
क्यों इतिहास के हर पन्ने पर, पौरुष बस खामोश रहा?

जब एक पुरुष ने, एक पुरुष का, ये कैसा सम्मान किया?
काट शीश अपनी ही माँ का, ये कैसा ऋणदान किया?
जब विवाह ही नहीं करना था तुमने, तो क्यों था मेरा हरण किया?
और जो करे कुदशा एक स्त्री की, क्यों ऐसे प्रण का वरण किया?


गर ये ही सब मैं, तुम संग करती, तो तुम क्या करते ?
उत्तर दो !!! 
क्यों इतिहास के हर पन्ने पर, पौरुष बस खामोश रहा?
                                  - अतुल सती 'अक्स'   
              
    


कोई टिप्पणी नहीं: