कल मैं एक मंदिर के आगे से गुजर रहा था प्रणाम करने के लिए जैसे ही सर झुकाया तो देखा कि एक लड़की(युवती) एकदम झीने से स्लीवलेस टॉप में और बहुत छोटे नेकर में मंदिर आयी हुई थी। एकदम गौर वर्ण की सुंदरी साक्षात् अप्सरा जैसी लग रही थी। मैं मुख से याद तो भगवान को कर रहा था लेकिन मन ही मन उस लड़की के अंग प्रत्यंग देख रहा था।
बल की खूबसूरत थी वो। लेकिन उसको देखने के चक्कर में भगवान की मूर्ति की ओर देख ही नहीं पाया। मन लगा कर, ध्यान लगा कर पूजा कर ही नहीं पाया।
अब मुझे समझ नहीं आ रहा कि
१) क्या इसमें कोई गलत बात है?
२) क्या इस घटना में किसी की गलती है?
२)और है तो गलती किसकी है?
३) और क्या गलती है?
४) और अगर आप मेरी जगह होते तो आप क्या करते?
अच्छा जवाब वो देना जो दिल कहे, मन कहे, दिमाग से कुछ कमेंट मत लिखना। अपना सच तो आप भी जानते ही होंगे।
इस ब्लॉग में शामिल हैं मेरे यानी कि अतुल सती अक्स द्वारा रचित कवितायेँ, कहानियाँ, संस्मरण, विचार, चर्चा इत्यादि। जो भी कुछ मैं महसूस करता हूँ विभिन्न घटनाओं द्वारा, जो भी अनुभूती हैं उन्हें उकेरने का प्रयास करता हूँ। उत्तराखंड से होने की वजह से उत्तराखंडी भाषा खास तौर पर गढ़वाली भाषा का भी प्रयोग करता हूँ अपने इस ब्लॉग में। आप भी आन्नद लीजिये अक्स की बातें... का।
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मंगलवार, 3 जनवरी 2017
आप मेरी जगह होते तो क्या करते?
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