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शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

हनुमान जी और उनके विवाह


आज हनुमान जी के विवाह बारे में एक चर्चा। 
(ये लेख केवल इस बारे में है कि हमारी संस्कृति की पुस्तकों में (ग्रंथों, वेदों, संहिताओं में, अन्य रामायणों में ) क्या लिखा है? और कोई एक पुस्तक जो ज्यादा प्रचलित हो जाती है उसी की हम मान्यताएं बन लेते हैं। ये सिर्फ तथ्य हैं, मान्यताएं हैं। )    
  
हम सब ये जानते हैं कि हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं, लेकिन क्या आप ये जानते हैं कई रामायणों में  हनुमान जी विवाहित भी बताये गए हैं। 

जैन रामायण के अनुसार तो हनुमान जी के सैकड़ों विवाह थे जिनमे रावण, विभीषण और खरदूषण पुत्री भी हैं।    (विमलसूरि कृत "जैन रामायण")
इंडोनेशिया - मलय- थाई रामायणों में (खमेर - रामकेर और थाई रामकेंइन में) हनुमान जी एक मतस्य कन्या "सुअंनमच्चा" जो कि रावण पुत्री थी, से विवाह करते हैं।  
इन रामायणों के अनुसार हनुमान, खरदूषण(स्वर्णलता), रावण(सुअंनमच्चा) और विभीषण( बेंजकया - त्रिजटा ) के दामाद भी थे। उन्होंने इन तीनों की पुत्रियों से विवाह भी किया था। 
त्रिजटा और हनुमान जी से एक असुर पुत्र उत्त्पन्न हुआ जिसका सर वानर का और पूँछ थी। 
उसका नाम "हनुमान टेगंग्गा या असुरपद) था।    

लेकिन जो आश्चर्य है वो ये है कि स्वयं भारत में ही उन्हें एक जगह सपत्नीक पूजा जाता है।  तेलंगाना राज्य में  एक स्थान है - खम्मम - जहाँ हनुमान जी अपनी पत्नी समेत पूजे जाते हैं। 
यहाँ हनुमान जी अपने ब्रम्हचारी रूप में नहीं बल्कि गृहस्थ रूप में अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान है।
और बाल्मीकि, कम्भ, सहित किसी भी रामायण और रामचरित मानस में हनुमान जी के इसी रूप का वर्णन मिलता है, लेकिन "पराशर संहिता" में हनुमान जी के विवाह का उल्लेख है।
पराशर ऋषि, ब्रह्मा के प्रपोत्र ,"गुरु वशिष्ठ" के पौत्र, शक्ति मुनि के पुत्र  और "महाभारत, उपनिषदों " के रचयिता "कृष्णद्वेपायन वेद व्यास" के पिता थे। 


पराशर ऋषि कृत पराशर संहिता अनुसार:      
पवनपुत्र का विवाह भी हुआ था और वो बाल ब्रह्मचारी भी थे, कुछ विशेष परिस्थियों के कारण ही बजरंगबली को सुवर्चला के साथ विवाह बंधन मे बंधना पड़ा। हनुमान जी के गुरु भगवान सूर्य थे। हनुमान, सूर्य से अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, सूर्य कहीं रुक नहीं सकते थे इसलिए हनुमान जी को सारा दिन भगवान सूर्य के रथ के साथ साथ उड़ना पड़ता और भगवान सूर्य उन्हें तरह- तरह की विद्याओं का ज्ञान देते।
लेकिन हनुमान जी को ज्ञान देते समय सूर्य के सामने एक दिन धर्मसंकट खड़ा हो गया, कुल 9 तरह की विद्याओं में से हनुमान जी को उनके गुरु ने पांच तरह की विद्या तो सिखा दी लेकिन बची चार तरह की विद्या और ज्ञान ऐसे थे जो केवल किसी विवाहित को ही सिखाए जा सकते थे।
हनुमान जी पूरी शिक्षा लेने का प्रण कर चुके थे और इससे कम पर वो मानने को राजी नहीं थे।इधर भगवान सूर्य के सामने संकट था कि वो धर्म के अनुशासन के कारण किसी अविवाहित को कुछ विशेष विद्याएं नहीं सिखला सकते थे। ऐसी स्थिति में सूर्य देव ने हनुमान जी को विवाह की सलाह दी और अपने प्रण को पूरा करने के लिए हनुमान जी भी विवाह सूत्र में बंधकर शिक्षा ग्रहण करने को तैयार हो गए।
लेकिन हनुमान जी के लिए दुल्हन कौन हो और कहा से वह मिलेगी इसे लेकर सभी चिंतित थे, ऐसे में सूर्यदेव ने अपने शिष्य हनुमान जी को राह दिखलाई। सूर्य देव ने अपनी परम तपस्वी और तेजस्वी पुत्री सुवर्चला को हनुमान जी के साथ शादी के लिए तैयार कर लिया।
देवी सुवर्चला बहुत ही तेजपूर्ण थी अपने पिता की ही भांति। सुवर्चला सदा ही तप रत रहती थीं और आगे भी अपना समस्त जीवन तप में ही व्यतीत करना चाहती थीं।   
इस विवाह के बाद हनुमान जी ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और सुवर्चला सदा के लिए अपनी तपस्या में रत हो गई।
इस तरह हनुमान जी भले ही शादी के बंधन में बांध गए हो लेकिन शाररिक रूप से वे आज भी एक ब्रह्मचारी ही हैं।
सूर्यदेव ने इस विवाह पर यह कहा की – यह शादी ब्रह्मांड के कल्याण के लिए ही हुई है और इससे हनुमान जी का ब्रह्मचर्य प्रभावित नहीं होगा।


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