जब चीर हरण, सरे आम हुआ, तब पौरुष क्यूँ, किंकर्तव्य विमूढ़ हुआ?
जब भीख समझ,मुझे बाँट दिया,तब पौरुष क्यूँ, किंकर्तव्य विमूढ़ हुआ?
जब आग,तन झुलसा न सकी, पर, मन भीतर भीतर तब झुलस गया।
जब त्याग कर वन में छोड़ दिया,तब पौरुष क्यूँ, किंकर्तव्य विमूढ़ हुआ?
-अतुल सती 'अक्स'
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