अभी तक इस ब्लॉग को देखने वालों की संख्या: इनमे से एक आप हैं। धन्यवाद आपका।

यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 20 जुलाई 2016

यक्ष् प्रश्न

जब चीर   हरण, सरे आम हुआ, तब पौरुष क्यूँ, किंकर्तव्य विमूढ़ हुआ?
जब भीख समझ,मुझे बाँट दिया,तब पौरुष क्यूँ, किंकर्तव्य विमूढ़ हुआ?
जब आग,तन झुलसा न सकी, पर, मन भीतर भीतर तब  झुलस गया। 
जब त्याग कर वन में छोड़ दिया,तब पौरुष क्यूँ, किंकर्तव्य विमूढ़ हुआ?    
                                                               -अतुल सती 'अक्स' 

कोई टिप्पणी नहीं: