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मंगलवार, 5 जुलाई 2016

भारत: एक पहचान खोता राष्ट्र - अक्स

भारत: एक पहचान खोता राष्ट्र
 आज में इस लेख के माध्यम से भारत वर्ष की उत्पत्ति और भारत नाम के उदय के बारे में कुछ प्रकाश डालना चाहूँगा. मेरे कई मित्र मेरे इस भावना से अवगत हैं की हमारे देश की और हम देश वासियों की ये बड़ी ही अजीब विडम्बना है की हम खुद को भारत वासी से ज्यादा इंडियन कहलाना पसंद करते हैं. हमारा देश की गुलाम मानसिकता देखिये  की अंग्रेजों की सहूलियत के लिए हमने अपने देश का नम ही बदल दिया. "भारत" हिंदी में और "इंडिया" अंग्रेजी में. हम दुनिया के एकलौते देश हैं जहाँ उसकी खुद की मात्रभाष सबसे कम बोली जाती है... इंग्लिश बहुत ही तेजी के साथ फ़ैल रही है और बहुत उम्मीद है की जल्द ही सिर्फ आंग्ल भाषा ही इस देश में बचेगी.. जैसे संस्कृत ख़तम हो रही अहि ऐसी ही हिंदी का हश्र होगा. इसीलिए जरूरी है की सर्वप्रथम हम अपने देश का नाम जाने. हमारे देश का नम भारत क्यूँ है? कब से है? भारत क्या है? ये कोई काल्पनिक नाम नहीं है. ये पौराणिक नाम है जो कई सदियों से चलता आ रहा है.


आखिर ये भारत नाम आया कहाँ से?
भारत नाम की उत्पति का सम्बंध प्राचीन भारत के चक्रवर्ती सम्राट, मनु के वंशज भगवान ऋषभदेव के पु्त्र भरत से है। भरत एक प्रतापी राजा एवं महान भक्त थे। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कन्ध एवं जैन ग्रन्थों में उनके जीवन एवं अन्य जन्मों का वर्णन आता है।
भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वायंभुव मनु ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थलेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे। विष्णु पुराण में उल्लेख आता है "ततश्च भारतवर्ष तल्लो केषु गीयते"अर्थात् "तभी से इस देश को भारत वर्ष कहा जाने लगा"। वायु पुराण भी कहता है कि इससे पहले भारतवर्ष का नाम हिमवर्ष था।
श्रीमद्भागवत के अनुसार:
येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुण आसीद्येनेदं वर्षं भारतमिति व्यपदिशन्ति॥९॥
अर्थात्
उनमें (सौ पुत्रों में) महायोगी भरतजी सबसे बड़े और सबसे अधिक गुणवान् थे। उन्हीं के नाम से लोग इस अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे॥९॥
दो अध्याय बाद इसी बात को फिर से दोहराया गया है। एक अन्य स्थान पर भागवत में लिखा है "अजनाभ नामैतद्वर्ष भारत मिति यत् आरंभ्य व्यपदिशन्ति" अर्थात् "इस वर्ष को जिसका नाम अजनाभ वर्ष था तबसे (ऋषभ पुत्र भरत के समय से) भारत वर्ष कहते हैं"
एक अन्य मत जो कि आमतौर पर पाठ्य पुस्तकों में प्रचलित है, के अनुसार दुष्यन्त और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारत नाम पड़ा। परन्तु विभिन्न स्रोतों में वर्णित तथ्यों के आधार पर यह मान्यता गलत साबित होती है। पूरी वैष्णव परम्परा और जैन परम्परा में बार-बार दर्ज है कि समुद्र से लेकर हिमालय तक फैले इस देश का नाम प्रथम तीर्थंकर दार्शनिक राजा भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष पड़ा। इसके अतिरिक्त जिस भी पुराण में भारतवर्ष का विवरण है वहां इसे ऋषभ पुत्र भरत के नाम पर ही पड़ा बताया गया है।
विष्णु पुराण (अंश-२, अध्याय-१) कहता है कि जब ऋषभदेव ने नग्न होकर गले में बाट बांधकर वन प्रस्थान किया तो अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को उत्तराधिकार दिया जिससे इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ गया।
ऋषभाद् भरतो जज्ञे ज्येष्ठः पुत्रशतस्य सः (श्लोक २८) अभिषिच्य सुतं वीरं भरतं पृथिवीपतिः (२९) नग्नो वीटां मुखे कृत्वा वीराधवानं ततो गतः (३१) ततश्च भारतं वर्षम् एतद् लोकेषु गीयते (३२)
लिंग पुराण में ठीक इसी बात को ४७-२१-२४ में दूसरे शब्दों में दोहराया गया है।
सोभिचिन्तयाथ ऋषभो भरतं पुत्रवत्सलः। ज्ञानवैराग्यमाश्रित्य जित्वेन्द्रिय महोरगान्। हिमाद्रेर्दक्षिण वर्षं भरतस्य न्यवेदयत्। तस्मात्तु भारतं वर्ष तस्य नाम्ना विदुर्बुधाः।
अर्थात (संक्षेप में) इन्द्रिय रूपी साँपों पर विजय पाकर ऋषभ ने हिमालय के दक्षिण में जो राज्य भरत को दिया तो इस देश का नाम तब से भारतवर्ष पड़ गया। इसी बात को प्रकारान्तर से वायु और ब्रह्माण्ड पुराण में भी कहा गया है।
विष्णु पुराण कहता है कि उसी देश का नाम भारतवर्ष है जो समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में है।
उत्तरम् यत् समुद्रस्य हिमाद्रे: चैव दक्षिणम्। वर्षम् तद् भारतम् नाम भारती यत्र संतति:’ (२,३,१)।
इसमें खास बात यह है कि इसमें जहां भारत राष्ट्र का वर्णन है वहाँ भारतीयों को भारती कहकर पुकारा गया है।
महाभारत के भीष्म पर्व के नौवें अध्याय में धृतराष्ट्र से संवाद करते हुए, उनके मन्त्री संजय कहते हैं-
अत्र ते वर्णयिष्यामि वर्षम् भारत भारतम्। प्रियं इन्द्रस्य देवस्य मनो: वैवस्वतस्य च। पृथोश्च राजन् वैन्यस्य तथेक्ष्वाको: महात्मन:। ययाते: अम्बरीषस्य मान्धातु: नहुषस्य च। तथैव मुचुकुन्दस्य शिबे: औशीनरस्य च। ऋषभस्य तथैलस्य नृगस्य नृपतेस्तथा। अन्येषां च महाराज क्षत्रियाणां बलीयसाम्। सर्वेषामेव राजेन्द्र प्रियं भारत भारतम्॥
अर्थात् हे महाराज धृतराष्ट्र, अब मैं आपको बताऊँगा कि यह भारत देश सभी राजाओं को बहुत ही प्रिय रहा है। इन्द्र इस देश के दीवाने थे तो विवस्वान् के पुत्र मनु इस देश से बहुत प्यार करते थे। ययाति हों या अम्बरीष, मान्धाता रहे हो या नहुष, मुचुकुन्द, शिबि, ऋषभ या महाराज नृग रहे हों, इन सभी राजाओं को तथा इनके अलावा जितने भी महान और बलवान राजा इस देश में हुए, उन सबको भारत देश बहुत प्रिय रहा है।
इससे पता चलता है कि महाभारत काल से पहले से ही भारत नाम प्रचलित था।
इन तथ्यों के देखकर प्रश्न उत्पन्न होता है कि यह धारणा कहाँ से आई कि दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत हुआ? इस सम्बंध में ध्यान देना होगा कि सातवें मनु के आगे दो वंश हो गए थे पहला इक्ष्वाकु या सूर्यवंश और दूसरा चन्द्रवंश। इसी चन्द्रवंश में दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र भरत का जन्म हुआ। ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लेख है- "चक्रवर्ती सुतो जज्ञे दुष्यन्तस्य महात्मनः शकुन्तलायाँ भरतो यस्य नाम्तु भारताः" अर्थात्- "महात्मा दुष्यन्त का शकुन्तला से चक्रवर्ती पुत्र उत्पन्न हुआ जिसकी उपाधि भारत हुई"। इस भरत वंश के लोग भारत कहलाए। यहाँ भारताः से इस भारत की धारणा की गई। जबकि यह भरत के वंशजों से जुड़ी उपाधि है। इस सन्दर्भ में गीता के विभिन्न श्लोक देखे जा सकते हैं जिनमें भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन को भारतकह कर सम्बोधित करते हैं जैसे- "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत"
इसके अतिरिक्त ऋषभ पुत्र भरत तथा दुष्यन्त पुत्र भरत में छः मन्वन्तर का अन्तराल है। अतः यह देश अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत है।



भारत एक राष्ट्र कैसे हुआ??
भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव-सभ्यता का पहला राष्ट्र था। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है।
भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वयंभू मनु ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़ कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे।


तो ये एक संक्षिप्त परिचय था भारत देश का. जिसे सोने की चिड़िया कहा जाता था. जो आर्याव्रत था... जम्बू दीप था. विश्व गुरु था. ज्ञान गुरु था. हमें इसकी गरिमा की रक्षा करनी ही चहिये. प्रगति पथ पर खुद के साथ साथ देश को भी आगे ले जायें.
जय हिंद !!!!! जय भारत !!!!!! 

                 - अक्स 

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