दैत्य, दानव, राक्षस, असुर : भ्रान्ति
भारतीय धार्मिक कथाएँ- इंडियन माइथोलॉजी (जिसे अंग्रेजों ने मिथ = झूठ नाम से प्रचारित किया था, हालाँकि अब हम इसे ग्रीक वर्ड मानकर- मिथ = पुरानी कथा मानकर, स्वीकार कर चुके हैं।) जितना ज्यादा पढ़ रहा हूँ, जितना जान रहा हूँ, उतना ही विचित्र अनुभव कर रहा हूँ। हर एक पात्र की एकदम ही अलग अलग कहानियाँ हैं, बस जो चल निकली वो ही धार्मिक गाथा बन गयी, और वो ही मान्यता, आज कल उसे ही धर्म कहने लगे। सत्य क्या है किसी को नहीं पता। असल में, जहाँ तक मेरा मानना है कभी कोई धर्म-अधर्म का युद्ध हुआ ही नहीं बल्कि सदा ही सभ्यताओं का युद्ध हुआ है।सत्ता के लिए युद्ध हुआ और जो जीता उसके ही हिसाब से इतिहास लिखा गया।
शिव को असुर भी कहा गया है, ये आज कौन मानेगा? असुर का मतलब दैत्य,दानव या राक्षस नहीं है, जिसने सुरा(देव मदिरा) पी वो सुर, जिसने नहीं वो असुर। महादेव ने विषपान किया था। सुरापान नहीं। पहले सुर और असुर दोनों आर्य ही थे; परन्तु जिन लोगों ने सुरा नहीं ग्रहण की, वे असुर और जिन्होंने ग्रहण की, वे सुर कहलाये।
रामायण का यह श्लोक इसी प्रकार का है-
सुराप्रतिग्रहाद्देवाः सुरा इत्यभिविश्रुताः। अप्रतिग्रहणात् तस्या दैतेयाश्चासुरास्तथा॥
जो जंगलों(धरा-प्रकृति) के रक्षक थे, जो रक्षण करते थे, वो रक्ष जाति के हुए, जिन्हें हम राक्षस कहते हैं। जो जंगलों(धरा-प्रकृति) का यक्षण(पूजा) करते थे वे यक्ष कहलाये।
- दैत्य, कश्यप-दिति के पुत्र थे,
- आदित्य(देवता), कश्यप- अदिति के पुत्र थे,
- दानव , कश्यप- दनु से
- राक्षस , कश्यप- सुरसा से
तो ये सब सौतेले भाई बहन थे। दानव, दैत्य, राक्षस , देवता ये सब एक ही पिता की संतान थे। लेकि आजकल हम दैत्य, दानव, राक्षस, असुर को एक ही मानते हैं जबकि ये अलग अलग ही थे। सभ्यता अलग थी सभी की। कोई भी अच्छा या बुरा नहीं था।
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