कोई तो मजहब ऐसा हो,
जिसे किसी से खतरा न हो,
जिसका परचम बुलंदी पर हो,
जो कभी आहत न हो,
जो आज खतरे में न हो।
जो डराता न हो किसी को,
जो किसी से डरता न हो,
जो चिल्लाता न हो,
जो चीखता न हो।
कोई तो मजहब दीन धरम होगा,
जो नफरत वाक़ई में न करता हो,
सच में कहीं कोई शाँति सुकून,
की बात करता हो,
उसके मानने वालों से,
वो मजहब ये मुहब्बत,
निभवाता भी हो।
कहीं तो कोई बंदिश न हो,
जोर न हो, जबरदस्ती न हो,
जहाँ इंसान इंसान हो,
कोई भेड़ चाल की भेड़ न हो।
कोई तो मजहब ऐसा हो,
जिसे किसी से खतरा न हो।
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