नाप ले कर, खुद का, हर बार,
एक चादर खरीद लाता हूँ।
और हर बार अपने पाँव,
चादर से बाहर ही पाता हूँ।
पाई पाई को तरसके,
जब किसी खजाने को पाता हूँ।
एक पाई और मिल जाए,
बस ये ही एक जुगत लगाता हूँ।
इस भागमभाग में भागते हुए,
अपनों को पीछे छोड़ता जाता हूँ।
दिखावे के साथी यूँ तो हैं बहुत,
पर, साथ कम का ही पा पाता हूँ।
हर चमक-धमक को तरसता हूँ।
जेब हमेशा छोटी ही पाता हूँ,
सांस, यूँ तो रोज लेता हूँ, पर,
जाने क्यूँ, जीने को तरस जाता हूँ ?
नाप ले कर, खुद का, हर बार,
एक चादर खरीद लाता हूँ।
और हर बार अपने पाँव,
चादर से बाहर ही पाता हूँ।
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