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गुरुवार, 24 अगस्त 2017

कौन है ये शिव?

कौन है ये शिव?   
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कह दो शिव के सर से बहती, 
वो गंगा धार नहीं,
जिस रक्तिम आसन पर बैठा, 
क्या वो मूलाधार नहीं,
नीलकंठ नहीं विशुद्धि,
त्रिनेत्र में आज्ञा नहीं,
स्वादिष्ठान शिवलिंग दर्प नहीं, 
और क्या 
मणिपुर में कोई सर्प नहीं। 

त्रिशूल नहीं है इड़ा-पिंगला
सुषुम्ना बीचों बीच नहीं।
डमरू नहीं अनाहद यंत्र,
नशा, क्या नाड़ी शुद्धि तंत्र नहीं?

क्या गजचर्म उसका कवच नहीं?
नंदी काम विजय पताका नहीं?
सड़ता,गलता,जलता,बुझता शव है जो,
उस से प्रकट स्वयंभू,
बोलो क्या वो शिव नहीं?

हिमालय के उत्तुङ्गशिखर,
क्या सहस्त्रार के पङ्कज दल नहीं?
श्वास ह्रदय का स्पंदन,
क्या तांडव की तरकल नहीं?

जिस शिव का है सब ध्यान करते,
बोलो !
वो किसके ध्यान में रहता मगन?
मिश्रित हैं उसमे भी मुझजैसे,
अग्नि, जल, पवन, धरा और गगन,            
वो भी तो जलता,बहता,उड़ता रहता,
कठोर कभी तो शून्य सा खोया रहता। 

वो शिव मेरा ध्यान नहीं,
और मैं भी उसका ध्यान नहीं,
फिर भी वो मुझमे है खोया,
और मैं भी उसमे हूँ खोया,
इसका उसको,
इसका मुझको,
अभिमान नहीं।    
उसमे,मुझमे,तुझमे,
इसमें,उसमें,
कुछ भेद नहीं,
बस इतना हमको ज्ञान नहीं। 
                     - अतुल सती 'अक्स'       
       
     https://atulsati.blogspot.in/2017/08/blog-post_24.html
  
         

बुधवार, 23 अगस्त 2017

मेरा अनुभव

मेरा अनुभव
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कहीं दूर पृथ्वी के गर्भ से,
भभक रही है एक ज्वाला,
उछल उछल कर निकल रहा है लावा,
कहाँ से हुई घनघोर रात में यकायक भोर?
एक अदृश्य ऊर्जा स्तम्भ प्रकट हो,
चीर जाता है मुझे,
सुषुप्त सुषुम्ना को,
चमका कर,
कहीं दूर जाता है,
अनंत अंतरिक्ष की ओर।

अरे!!! क्या हुआ ये ???
स्तब्ध हुआ "मैं",
क्यों पागलों सी नाचने लगी,
दोनों सहेलियाँ,
और सुलझाने लगी हैं जैसे पहेलियाँ।

क्यों लहरा लहरा कर,
बेलों सी लिपट रही थीं?
क्यों रंग बिरंगे कमलों को,
खिला रही थी?

कहाँ फट रहा है ये ज्वालामुखी,
क्यों ठंडा है ये बहता लावा?
क्यों समय का नहीं हुआ एहसास?
क्यों फट गया है कपाल?
और कौन है?
जो खिला रहा है कमल आसपास?

सहस्त्र कमलदल के बीच खड़े हो?
कौन देख रहा है किसको,
अंतरिक्ष ये जगमग जगमग क्या है?
क्या है ये अनुभव? जो होता है मुझको?

कौन था "मैं" क्या हूँ "मैं"
क्यों अश्रुधारा रूकती नहीं?
क्यों हँसी कभी थमती नहीं?
क्यों रोना आता है तभी,
जब बेतहाशा हँसी आती कभी।

क्यों साँसों की ध्वनि ह्रदय संग तरंगित होती?
क्यों ऊर्जा स्पंदन की ऊपर नीचे अनुभूति होती?
क्यों अणु सामान खाली ही महसूस होता है?
क्यों तुझमे मुझमे इसमें उसमे
कोई भी अंतर नहीं महसूस होता है?
- अतुल सती 'अक्स'