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बुधवार, 23 अगस्त 2017

मेरा अनुभव

मेरा अनुभव
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कहीं दूर पृथ्वी के गर्भ से,
भभक रही है एक ज्वाला,
उछल उछल कर निकल रहा है लावा,
कहाँ से हुई घनघोर रात में यकायक भोर?
एक अदृश्य ऊर्जा स्तम्भ प्रकट हो,
चीर जाता है मुझे,
सुषुप्त सुषुम्ना को,
चमका कर,
कहीं दूर जाता है,
अनंत अंतरिक्ष की ओर।

अरे!!! क्या हुआ ये ???
स्तब्ध हुआ "मैं",
क्यों पागलों सी नाचने लगी,
दोनों सहेलियाँ,
और सुलझाने लगी हैं जैसे पहेलियाँ।

क्यों लहरा लहरा कर,
बेलों सी लिपट रही थीं?
क्यों रंग बिरंगे कमलों को,
खिला रही थी?

कहाँ फट रहा है ये ज्वालामुखी,
क्यों ठंडा है ये बहता लावा?
क्यों समय का नहीं हुआ एहसास?
क्यों फट गया है कपाल?
और कौन है?
जो खिला रहा है कमल आसपास?

सहस्त्र कमलदल के बीच खड़े हो?
कौन देख रहा है किसको,
अंतरिक्ष ये जगमग जगमग क्या है?
क्या है ये अनुभव? जो होता है मुझको?

कौन था "मैं" क्या हूँ "मैं"
क्यों अश्रुधारा रूकती नहीं?
क्यों हँसी कभी थमती नहीं?
क्यों रोना आता है तभी,
जब बेतहाशा हँसी आती कभी।

क्यों साँसों की ध्वनि ह्रदय संग तरंगित होती?
क्यों ऊर्जा स्पंदन की ऊपर नीचे अनुभूति होती?
क्यों अणु सामान खाली ही महसूस होता है?
क्यों तुझमे मुझमे इसमें उसमे
कोई भी अंतर नहीं महसूस होता है?
- अतुल सती 'अक्स'

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