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मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

कभी कभी सोच्दुं-the mountains are calling. we must go... - anantnaad

the mountains are calling. we must go...


भी कभी सोच्दु मैं  एक्लू बैठी की, ये देश मा,
जख सब्बि धाणी नकली च असली का भेष मा,
दुई टका कमाणा का खातिर यख मैं भटक्णु  छौं,
अग्ने भगणे  की दौड़ मा,सब्बु तें पिछने छोडणू छौं।
क्या अब भी मेरु गौं, वनि रौतेलू होलू?
क्या अब भी वख डण्डिओं मा सोनू सी घाम आन्दु होलू?
क्या अब भी वख घूगूती घुरोंदी होली?
क्या अब भी वख चखुली प्रेम गीत गोन्दी होली?        
     
कभी कभी सोच्दुं छौं मी। - ४  

गब्बू मामा का वू रामलीला का पाठ,
वू मेरा ममाकोट का अपरा ठाट बाट,
ठुल्लू पुन्ग्डू मा रोपणी का दिन,
सौण  भादों का वु खुदेड़ दिन।   
     
क्या अब भी नेल मा ठण्डु पाणी औंदु होलू?
क्या अब भी वख डाँडो मा क्वी बांसुरी बजोंदु होलू ?
क्या अब भी वख पनेरी पंदेरा औंदी होली?
क्या अब भी वख रामें - पंडों लीला होंदी होली?   
कभी कभी सोच्दुं छौं मी। - ४  

भी कभी सोच्दु मी एक्लू बैठी की ये देश मा,
क्या पाई क्या खोई मिन  ये परदेश मा,
दिन रात अपरा गों की याद मा रोंदू  छौं मी ।
त्वे,मेरा मुल्क,मेरा पाड़, याद करदू छौं।
                             

कभी कभी सोच्दुं छौं मी। - ४  

                                        -अतुल सती 'अक्स'