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शुक्रवार, 24 मार्च 2017

चल मन बावरे !!!



चल मन बावरे !!!
चल चलें एक बार फिर। 
गंगा जी का छाला(1) एकबार फिर। 
वहीँ जहाँ अभी तक गंगा का दम नहीं घुटा,
फाँस(2) तो लगाई है पर अभी भी कुछ ज़िंदा है वो,
यहाँ तो जहर दे कर मार दिया है हमने उसे।   


चल मन बावरे !!!
चल चलें एक बार फिर। 
उन पहाड़ों के पास, जो हैं बस मिट्टी के ढ़ेर,
जो बिना अपनों के साथ के, दरक रहे हैं,
उन्हीं त्यागे हुए पुरखों के पास,  
कुछ पराये से अपनों के पास,
यहाँ तो अपने को भी मैं अपना नहीं कह सकता।

चल मन बावरे !!!
चल चलें एक बार फिर।
जँगलों की छाँव में एक बार फिर से।  
जो बस अब चिता से धूं धूं कर जल उठेंगे,
उन्ही सुलगते सवालों के जलते जवाबों के बीच,
यहाँ तो बाँझ बुराँस के बौण(3) बस कविताओं गानों में ही हैं। 


चल मन बावरे !!!
चल चलें एक बार फिर। 
अपने झूठे और जूठे चिंताओं का नकली बोझ लिए,
फिर से अपनी खोयी पहचान को,
जबरदस्ती की एक पहाड़ी पहचान देने को। 
एक बार फिर अपने मुल्क अपने गाँव,
यहाँ तो मैं पहाड़ों से बड़ा हो गया हूँ पहाड़ों को छोटा दिखा कर। 

चल मन बावरे !!!
चल चलें एक बार फिर। 
1 - किनारे 
2 - फाँसी 
3 - जँगल