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गुरुवार, 26 मई 2016

संस्मरण: १ (मेरी नन्दा देवी राजजात यात्रा २०१४)

ये कोई कहानी नहीं न ही कोई कल्पना है बल्कि एक सत्य घटना है। घटना है ये २०१४ की, पर्व था,  हिमालय का सबसे बड़ा पर्वतीय कुम्भ माँ नन्दा  देवी राज जात यात्रा, और स्थान था, बेदनी बुग्याल। हम लोग आली बुग्याल से घूम घाम कर वापस बेदनी बुग्याल पहुंचे। मेरे बाकी साथी अपने अपने टेंट में चले गए आराम करने किन्तु मैं और मेरे साथी अनूप असवाल, हम दोनों माँ नन्द के दर्शन करने हेतु माँ नन्द के विश्राम स्थल पहुंचे जहाँ माँ नन्दा और उनकी समस्त बहनों के लिए एक स्थान निर्धारित किया था। वहाँ पहुँचते ही हमने देखा कि दो गाओं के लोगों में आपस में लड़ाई हो रही है, नौबत मारपीट तक आ गई, और वजह थी कि एक गॉंव को लगता है की वो श्रेष्ठ हैं और दूसरे को लगता है कि वो खुद।
शायद कुरुड़ और बधाण गॉंव थे।
एक गॉंव ने पहले ही स्थान हथिया लिया और दूसरी डोली को अपने यहाँ स्थान नहीं दिया, जिससे रुष्ट हो करा दोनों गॉंव में कलह शुरू हो गया कि उनकी देवी का अपमान हो गया।
मैं अपने जीवन में पहली बार नंदा देवी राजजात में आया था। दिल्ली से इतनी दूर, बाण गॉंव से इतनी चढ़ाई चढ़ कर, बारिश में भीग कर रात भर ठण्ड में सिकुड़ कर,सिर्फ इस भव्य यात्रा का साक्षी होने, और मेरे जैसे हज़ारों लाखों लोग इसी उम्मीद पर उस यात्रा पर आए थे, लेकिन मेरे ही सामने मैं इस राजजात को बहुत ही बुरे मोड़ पर देख रहा था।           
मुझसे रहा नहीं गया और मैं भी बीच में कूद गया, दोनों पक्षों को समझाने के लिए, क्यूंकि बाहर के लोग मज़ाक बनाने लग गए थे, और सब तमाशा देख रहे थे, देवी का अपमान हो रहा था सो अलग। तभी किसी ने भीड़ में से मुझे धमकी दी कि मैं ज्यादा न बोलूँ ये उनका अपना मामला है और मुझे बहुत ही बुरे परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गयी। लेकिन मैं ठहरा एक जिद्दी पहाड़ी और माँ का भक्त।  मैंने कहा मुझे मार कर अगर तुम्हारा झगड़ा खत्म होता है, और ये राज जात यात्रा सफल होती है तो मार दो मुझे। लगभग २००-२५० लोगों से अकेला घिर हुआ था मैं और माँ नंदा का ही आशीर्वाद था कि मुझे इतनी हिम्मत मिली। 

मुझे बधाण गॉंव के लोग अपने शिविर के आगे ले गए घेर कर, कुछ लोग सिर्फ मरने मारने को तैयार थे और कुछ समझदार  शांति चाहते थे।  उनके जो मुख्य पुरोहित थे वो भी बाहर आ कर मुझसे जिरह करने लगे, कि उन्होंने माँ का अपमान किया है, उनके गॉंव का अपमान किया है, यहाँ तक कि सरकारी मदद भी उन्ही लोगों को मिली हमारे गॉंव के साथ सौतेला व्यवहार हुआ है। बहुत गुस्से में थे वो सभी के सभी।
मेरे साथ कुछ शिक्षक भी थे, कुछ फ़ौज से रिटायर लोग थे जो मेरी बातों को सुन रहे थे और समर्थन दे रहे थे। मैंने पंडित जी और सभी गॉंव वालों को समझाया कि उनकी नाराज़गी किस वजह से है?
पैसे नहीं मिले सरकार से इसीलिए ?देवी का अपमान हुआ इसीलिए?तुम्हारे गॉंव का अपमान हुआ इसीलिए?               
अपने ही विचारों में उलझते हुए उन्होंने कहा कि माँ का अपमान हुआ इसीलिए (क्यूंकि पैसे वाली वजह नहीं बोल सकते थे, और गाओं का अपमान देव यात्रा में कोई मायने नहीं रखता) वो नाराज़ हैं।
मैंने कहा की क्या वाकई कोई माँ का अपमान कर सकता है? क्या आप लोग लड़ झगड़ कर माँ का अपमान नहीं कर रहे हो? पंडित जी आपका काम था पूजा करना, लगातार देव आराधना करना और उसकी जगह आप हिंसा के लिए तैयार हो रहे हो? क्रोध से कैसे आप देव आराधना कर पाओगे? और आप लोग सभी गाओं वालों आप इस यात्रा में क्यों आये हो? अपनी बेटी को "माँ नंदा को" विदा करने, और वो भी ख़ुशी ख़ुशी।  क्या आप ऐसा कर रहे हो?क्या ये ही चाहते हो? क्या ऐसे में माँ भगवती प्रसन्न होंगी? इतने दूर दूर से लोग आए हैं, क्यों आये हैं?हमारी संस्कृति को देखने, पूजा करने, पूण्य कमाने। 
शाम को कुछ कार्यक्रम थे जिनमे सांस्कृतिक झलक दिखनी थी, जिसे वो लोग निरस्त कर चुके थे, लेकिन मेरे और मेरे मित्र अनूप असवाल द्वारा समझने पर वो लोग इस बात से सहमत हुए और धीरे धीरे एक दुसरे को माफ़ करते हुए  हम लोगों ने झुमेलो नृत्य शुरू किया।  

एक ब्रिगेडियर साहब थे जो की डीएम के साथ थे, उनसे मेरी चर्चा हुई और उन्होंने ही ये राय दी कि अगली बार सब देविओं के लिए निर्धारित केबिन बनाए जायेंगे सामान ऊंचाई के। लगभग २ घंटा लगा इस सब काम में।
राहत की बात ये थी कि एक बहुत बड़ा झगड़ा टल गया, और सभी लोग फिर से आनंद में आगये।
उस वक़्त मुझे जो ख़ुशी का एहसास हुआ उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता। वो अप्रितम अतुलनीय था। 

बारिश में भीगते भीगते मैं और अनूप वापस अपने शिविर में अपने साथिओं के पास आगये। कुछ देर बाद हमारी साथी हमें कहने लगे की चलो वहां बहुत अच्छा झुमेलो हो रहा है, लोग कार्यक्रम कर रहे हैं गीत गा रहे हैं, चलो।
मैं और अनूप बहुत थक गए थे, हमने मुस्कुराते हुए कहा तुम जाओ तुम आनंद लो, हम तो सोते हैं।  बहुत ही अच्छी नींद आयी थी उस शाम।  और सुना वो सारे कार्यक्रम बहुत देर शाम तक चले और काफी नाम हुआ राज जात का :)
जय माँ नंदा :)
                                  - अतुल सती 'अक्स'                 
      

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