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गुरुवार, 18 जून 2015

बातें

ये दीनो धरम की बातें, 
ये राम की रहीम की बातें, 
ये राजनीती, इज़्ज़त बेइज़्ज़ती की बातें,
ये देश की, जात की, धर्म की चिंता की बातें,
ये ऊँच नीच, सुन्दरता  बदसूरती की बातें,
ये सबक सीखाने की, युद्ध की बातें,  
ये,
                     भरे पेट वालों के मनोरंजन की होती हैं ये बातें,             
खाली पेट,
कभी ???
  कहीं ????
किसी से??? 
कब ???
             हो पाती हैं, ये बातें??? 
                               -अतुल सती 'अक्स'

सोमवार, 8 जून 2015

त्वे ते अपरी माया मा


(त्वे ते अपरी माया मा 
जन्मो जन्मा बंधन मा)---2
बंधण चांद च मी,-----------2  
बोल तेरी हाँ च की ना ?----4
                       
ई दुनिया बटीं दूर नई  दुनिया बसोला
जख हर रंगा,हर मौसमा का फूल खिलोला            
जख बारामास बसंत ऋतू होलि 
चखुला डालियों मा  प्रेम गीत गौला,गीत गौला 
          
 मेरा  मन मा यु ही च 
आन्ख्यों तिन जू बोली च )---2        
तेरा भी जिकुड़ी मा कखी ,-----2    
यू  बथ छे च की ना?------------४ 


जुन्याली रात मा,हाथों मा हाथ होला 
चाँद तारों का संग, प्रेम गीत हम गोला 
जू सौं खाई हमुन मिली के,
वेते, जन्मो जन्म, हम निभोला,हम निभोला 

(बसगी तू यन मेरा मन मा
मेरा मन का मंदिर मा)-----------2 

जन जल्णु हो  कुई दिवु --------2     
भगवती का मंदिर मा,----------4  
                                 -अतुल सती 'अक्स'

A song of Anant Naad...



शुक्रवार, 5 जून 2015

एक अधूरी चाह !!!






















सोचता हूँ,अपना बचपन अपने बच्चे को दे दूँ, 
उसको भी कुछ गौरैया और कुछ तितली दे दूँ,
वो भी खूब दौड़े खुले मैदानों में मेरी ही तरह,
थके तो उसको नल से आता मीठा पानी दे दूँ। 
मेरी ही तरह उसे भी धूप न रोके खेलने से,
वो भी नहाये गंगा में,कोई न रोके तैरने से, 
हरियाली से भरी जगह भी होती है धरा पर,
वो जगह देखे,वो खुद,कोई रोके न, देखने से।
     वो भी दादी संग देखे,रात को चाँद और तारे, 
     उसको साफ़ आसमान,ठंडी बहती हवा दे दूँ।  
        (सोचता हूँ,अपना बचपन अपने बच्चे को दे दूँ, 
                 उसको भी कुछ गौरैया और कुछ तितली दे दूँ.…… )
उसे भी साफ़ सड़कें,साफ़ हवा,पानी साफ़ मिले,
घर के आँगन में उसके भी,रोज कोई गुल खिले,
वो भी सांस खुल के ले,पानी भी वो जी भर पिए,
बिना मास्क बिना फ़िल्टर की आबो हवा मिले। 
खुद के हाथों ही खत्म किया उसका बचपन,
        काश उसके बचपन को अपनी ही कहानी दे दूँ।    
     (सोचता हूँ,अपना बचपन अपने बच्चे को दे दूँ, 
               उसको भी कुछ गौरैया और कुछ तितली दे दूँ.……) 
                                         -अतुल सती 'अक्स'

सोमवार, 1 जून 2015

लघु कथा 9 : चॉकलेट सीक्रेट - अतुल सती 'अक्स'

     आपके, हमारे, हम सभी के, बचपन से कुछ न कुछ सीक्रेट होते ही हैं वैसे ही प्रिया जो कि एक आठ साल की प्यारी सी लड़की है उसके भी दो सीक्रेट हैं और दोनों ही सीक्रेट चॉकलेट हैं।  क्या आप जानना चाहते हो उसका सीक्रेट?  
१) चॉकलेट (उम्र सात साल) 
२) चॉकलेट (उम्र आठ साल)
पहली चॉकलेट बड़ी ही स्वादिस्ट है और प्रिया की फेवरेट। ये चॉकलेट उसे उसके दादा जी ला कर देते थे जो कि उसे बहुत पसंद थी।  प्रिया चॉकलेट के बिना रह ही नहीं सकती थी। वो जब भी गाँव से आते तो उसके लिए उसकी फेवरेट चॉकलेट लाते थे, उसके माँ पापा के सामने एक चॉकलेट देते और बाकी चॉकलेट छुपा देते थे एक सीक्रेट बॉक्स में।  जिसे वो दोनों रात को जब दादा उसे कहानियां सुनाते थे, सुलाते थे, तब चुपके चुपके खाते थे। दादा जी को शुगर था लेकिन वो अपनी पोती के साथ चॉकलेट शेयर करते थे। और ये उन दोनों का टॉप सीक्रेट था। हर दिन वो बॉक्स खाली हो जाता था और फिर हर दिन उसमे कुछ चॉकलेट दादा जी डालते थे और फिर वो दोनों खाली कर देते थे खा खा कर। दादा जी वापस गाँव चले जाते जब तो प्रिया अगले साल के इंतज़ार में दादा जी और चॉकलेट  के, अपने सीक्रेट के इंतज़ार में ही रहती थी।   

लेकिन दूसरी चॉकलेट का स्वाद बड़ा ही कसैला सा है, प्रिया को नफरत है बुरी तरह।  वो अब चॉकलेट नहीं खाती, हरगिज नहीं जबकि उसका सीक्रेट बॉक्स चॉकलेट से भरा पड़ा है। उसके मामा जो कि उसे बहुत प्यार करते हैं और रोज उसे एक सीक्रेट चॉकलेट देते हैं। मामा जी आजकल उन्ही के साथ रह रहे हैं और प्रिया को पढ़ाई में मदद करते हैं। वो बहुत ही ज्यादा कठोर शिक्षक हैं। वो जब भी उसे पढ़ाते हैं तो किसी का भी अंदर आना मना है। वो जब भी उसे पढ़ा कर रूम से बाहर निकलते तो प्रिया कराहती ही रहती। वो अपने मामा के सामने बस कांपती ही रहती।  कुछ भी नहीं कह पाती।  बस अपने कपड़े समेटती और अटैच्ड बाथरूम में नहाने चली जाती। उसने एक बार मामा जी के हाथ से अपनी पसंदीदा चॉकलेट खाई थी और तब से मामा जी और उसका एक गन्दा घिनौना सीक्रेट बना, जो हमेशा के लिए एक डार्क सीक्रेट रहा। मामा जी रोज उसे एक चॉकलेट देते और वो रोज उसे उस डिब्बे में फेंक देती और अपने टॉप को अपने हाथों से मरोड़ते हुए कसमसाते हुए बस रोती रहती।

ये भी एक सीक्रेट है उसका जो वो किसी को बता नहीं पाती है, खुद को भी नहीं।                        
                                                                                -अतुल सती 'अक्स'  

लघु कथा 8: रास्ते के भगवान -अतुल सती 'अक्स'


"अरे चलो न जल्दी यहाँ क्यों रुक गए? पहले ही बड़ी देर हो रही है और तुम हो की जगह जगह रुक रहे हो।"
संध्या आज बड़ी ही जल्दी में थी,आज शिवरात्रि जो थी। वो हर सोमवार को व्रत रखती थी और शिव को बहुत मानती थी।

" अरे ये भी तो मंदिर है ये बेर और दूध यहीं शिवलिंग पर चढ़ा देते हैं। फल,पैसा जो भी दान करना है वो इन बाबा को दे देंगे।" मैंने अपनी कार सड़क के किनारे बने एक छोटे से मंदिर के पास रोक दी थी।

वो मंदिर सड़क पर एक छोटा सा मंदिर था जिसकी देखरेख एक वयोवृद्ध बाबा करते थे।वो किसी से कोई बात नहीं करते थे बस चुपचाप मंदिर में ही रहते थे। लोग उन्हें पागल बाबा कहते थे।

" अरे दान करने को ये ही पागल बाबा ही मिले क्या तुम्हे? और ये..... ये भी कोई मंदिर है भला? रास्ते के भगवान ही मिले थे तुम्हे?" बड़े ही गुस्से में संध्या ने कहा।
"हम मल्लिकार्जुन जा रहे हैं..... क्या तुम्हे इतना भी ध्यान नहीं? १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक है वो, मैं तो वहीँ दान पुण्य करुँगी और वहीँ दूध चढ़ाऊँगी अपने भोले बाबा को। मैं रास्ते के भगवान पर दूध नहीं चढ़ाऊँगी। अब चलो भी।"

संध्या की जिद के आगे मेरी एक न चली और हम मल्लिकार्जुन में ही पूजा अर्चना कर के घर लौटने लगे। रास्ते में संध्या अपनी सहेलिओं को बड़े ही नाज़ से बता रही थी कि वो आज मल्लिकार्जुन को दूध चढ़ा कर आयी है। उसकी तपस्या सफल हुई। और ठीक उसी वक़्त हमारी कार उसी 'रास्ते के भगवान' के मंदिर के पास से गुजर रही थी और मैं सोच रहा था "शायद भगवान भी बड़े घरों में रह कर बड़ा हो जाता है। रस्ते में बने छोटे मंदिर का भगवान छोटा ही है।
हम इंसानों ने भगवान को भी इंसान ही बना कर रख दिया है।"
               

-अतुल सती 'अक्स'