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शुक्रवार, 5 जून 2015

एक अधूरी चाह !!!






















सोचता हूँ,अपना बचपन अपने बच्चे को दे दूँ, 
उसको भी कुछ गौरैया और कुछ तितली दे दूँ,
वो भी खूब दौड़े खुले मैदानों में मेरी ही तरह,
थके तो उसको नल से आता मीठा पानी दे दूँ। 
मेरी ही तरह उसे भी धूप न रोके खेलने से,
वो भी नहाये गंगा में,कोई न रोके तैरने से, 
हरियाली से भरी जगह भी होती है धरा पर,
वो जगह देखे,वो खुद,कोई रोके न, देखने से।
     वो भी दादी संग देखे,रात को चाँद और तारे, 
     उसको साफ़ आसमान,ठंडी बहती हवा दे दूँ।  
        (सोचता हूँ,अपना बचपन अपने बच्चे को दे दूँ, 
                 उसको भी कुछ गौरैया और कुछ तितली दे दूँ.…… )
उसे भी साफ़ सड़कें,साफ़ हवा,पानी साफ़ मिले,
घर के आँगन में उसके भी,रोज कोई गुल खिले,
वो भी सांस खुल के ले,पानी भी वो जी भर पिए,
बिना मास्क बिना फ़िल्टर की आबो हवा मिले। 
खुद के हाथों ही खत्म किया उसका बचपन,
        काश उसके बचपन को अपनी ही कहानी दे दूँ।    
     (सोचता हूँ,अपना बचपन अपने बच्चे को दे दूँ, 
               उसको भी कुछ गौरैया और कुछ तितली दे दूँ.……) 
                                         -अतुल सती 'अक्स'

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