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गुरुवार, 5 मई 2016

तमन्नाओं का क़त्ल


मुफलिसी की कलाई मरोड़ते हुए,
महँगाई के कोठे को छोड़ते हुए।     

एक अदद मकान की खातिर,
पुरखों के घर को तोड़ते हुए।       

बच्चों की खातिर माँ बाप को,
कतरा कतरा लहू जोड़ते हुए।    

औरों के जीने को अन्न उगा कर,
कर्ज का कफ़न ओढ़ते हुए।  
   
'अक्स' ने देखा है तमन्नाओं को,
जरूरतों के आगे दम तोड़ते हुए।
                     - अतुल सती 'अक्स'



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