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सोमवार, 6 जून 2016

मानव-जानवर


जो एक माँ को उसके बच्चे से दूर करता है,
खुद के लिए उसके बच्चे को भूखा रखता है,
उसके बच्चे के  हिस्से का दूध पी जाता है,
जो पंछिओं के अजन्मे बच्चों को,
तवे पर फ्राई कर, कभी उबाल कर,
तो कभी कच्चा ही खा जाता है। 

गौ माँ है, ये भी सुनाता है, 
उसी माँ के बच्चे को,पथ्थर से पीट पीट कर,
नपुंसक बना, खेतों में जोत कर आता है।

मार कर जानवरों को, बेचकर आता है,
कभी उनका माँस खाता  है,
तो कभी अपने पर उनकी चमड़ी सजाता है। 

पवित्र जगह पर चमड़े की मनाही का,
अजीब फरमान सुनाता है, और उसी जगह खुद,   
चमड़े के तबले,ढोलक और ढोल बजाता  है। 

नदियां माँ हैं, देवी हैं, जीवन दायिनी हैं,
और फिर अपनी माँ के मुख पर, 
अपना ही मल मूत्र बहाता है। 

अपने सजावट के लिए, 
अन्य जानवरों को मारता जाता है,
अपने घरों की बसावट के लिए,
दूसरों के घर मिटाता जाता है।  
  
जानवरों को पिंजरे में कैद कर,
अपने बच्चों को दिखा दिखा कर,
हर बात की आज़ादी का पाठ  पढ़ाता जाता है,
   
देखा है कभी ऐसा जानवर कहीं सृष्टि में?
जो बाते तो बड़ी बड़ी करता है विकास की,
पर हर पल सिर्फ विनाश करता जाता है,
वो ही जानवर  तो मानव कहलाता है। 
                 - अतुल सती'अक्स' 
   

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