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गुरुवार, 30 जून 2016

ब्रह्माण्ड किसी स्त्री का गर्भ - -अतुल सती 'अक्स'

अगर ये समस्त ब्रह्माण्ड जिसमे असंख्य तारे, सूरज, ग्रह, आकाशगंगायें हैं ये वास्तव में सिर्फ ब्रह्म अंडे हुए तो?
सोचो कि ये सारा ब्रह्माण्ड किसी स्त्री का गर्भ हुआ तो? वाक़ई में जिसे हम भगवान कहते हों वो एक स्त्री, एक माँ हुई तो? और हम सब उस स्त्री के गर्भ में रहने वाले भ्रूण, या अंडे या कोशिका मात्र हुए तो?
गर्भ में भी तो अँधेरा ही होता है। और गर्भ में हमें नाभि नाल से सारा भोजन मिलता है लेकिन शुरुवात जीवन की, उन्ही अण्डों से होती है। गर्भ में हम कभी कल्पना नहीं कर सकते कि गर्भ से बाहर कोई जीवन हो सकता है। कि कोई माता भी हो सकती है? कोई पिता भी हो सकता है? उस वक़्त तो हम उस अँधेरे गर्भ को ही सारा संसार मानते हैं, जैसे इस वक़्त ब्रह्माण्ड को। क्या पता मृत्यु के पश्चात हमें माता (भगवान) के दर्शन हों जिसकी हम अभी भी कल्पना नहीं कर सकते। अभी हम उसके गर्भ में हैं, अँधेरे में और सोचते हैं कि मृत्यु के बाद कैसा जीवन? इस ब्रह्माण्ड के बाद कैसा जीवन? क्या पता जीवन हो? क्या पता  मृत्यु या फिर इस ब्रह्माण्ड की मृत्यु एक मृत्यु न होकर एक प्रसूति व्यवस्था हो?

जिन्हे हम ब्लैकहोल कहते हैं वो इस विशाल स्त्री का योनि मार्ग हो जहाँ से उस ग्रह का या उस ब्रह्माण्ड का नया जीवन प्रारम्भ होता हो? इस जगत जननी से अनेकोनेक मार्ग हों जो हमें बाहर लाते हों।  एक ब्रह्माण्ड से दूसरा ब्रह्माण्ड का कोकि मार्ग हो।  हम जितना जानते हैं उतना ही तो मानते हैं, जैसे गर्भ में हम जितना समझते हैं उतनी ही दुनिया लगती है लेकिन बाहर दुनिया अलग होती है ठीक उसी प्रकार क्या पता जितना ब्रह्माण्ड हम समझते हैं उससे बाहर एक नया ब्रह्माण्ड हो और ये ब्रह्माण्ड सिर्फ ब्रह्म अण्ड हो जो भ्रूण बनकर जन्म लेगा और साक्षात्कार कर पायेगा अपनी जगत जननी माता का। 


कल्पना कुछ भी हो सकती है, और सत्य भी। लेकिन कहीं वाक़ई में ये सत्य हुआ तो? क्या कहते हो? 
     
         
                                                                          -अतुल सती 'अक्स'              

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