मैंने सुना कि पहाड़ मर रहा है, आपने भी सुना बल?
क्या बथ हुई होली बल?
किसी ने कोई देबता ढुकाया है पक्का,उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड की लड़ाई हुई छे बल परसों,जरूर उत्तरप्रदेश ने गाल घात डाली होगी।लेकिन एक पुछेर ने बताया बल नयु नयु देबता है,और किसी अपने ने ही ढुकाया है बल,आजकल बल NRU(प्रवासी) और पहाड़ी (वासी) की भी लड़ाई चल रही है,तो कखि......किले कि पिछला कुछ सालों बटिन उत्तराखंडी बस रोणा ही छन,परारदां भी बल बादल फटे और इबारदां भी।किले कि गलती तो बल देबता ही करते हैं,हम तो नर हैं, हम थोड़े न कोई गलती करते हैं, अबोध हैं।डैम देबताओं ने बनवाया,आग भी लगवाई जंगलों में,पलायन भी उन्होंने ही किया।सड़कों के नाम पर बम देबताओं ने फोड़े,जंगल काट कर रिसोर्ट्स देबताओं ने बनवाए,पारम्परिक तरीकों से घर बनाने की विधा को देबताओं ने त्यागा,सीमेंट, सरिया, बालू, ईंट सब बाहर से ला ला कर,पहाड़ों पर बोझ बढ़वाया देबताओं ने,हमने थोड़े न कुछ किया।वैसे एक पुछेर ने ये भी बोला बल कि,देबता अपने आप की लग गए उत्तराखंड पर,किले कि कोई आता तो है नहीं घौर,और जो घौर में रहते हैं वो तो खुद उंद जाने को मर रहे हैं,तो देबताओं ने खुद ही हँकार लगवा दिया,और,अब रखा क्या है कुमौं गढ़वाल में,जो थे पहाड़ी वो प्लैन वाले हैं,जो बचे हैं वो जाने वाले हैं,तो अब आग, पानी,हाहाकार ही बचा बल अब पहाड़ में।वैसे ऐसा भी किसी देबता ने बोला है कि,वो आग लगा कर, बादल फाड़ फाड़ कर,पहाड़ को तोड़मोड़ कर एकदम प्लैन बन देंगे बल, जैसा दिल्ली, देहरादून, मुंबई है बल।क्या पता कोई वापस आजाये,या फिर कोई बच गया पहाड़ में तो वो प्लैन की ओर ना जाए।क्यूंकि यहाँ भी प्लैन और वहां भी प्लैन,इस तरह से पहाड़ बचे न बचे पर पहाड़ी बच जाए।पहाड़ी तो पहाड़ी ही ठैरा बल,तो क्या बोलते हो भेजी,कुछ गलत बोला तो बथाओ मैते, क्या गलत बोला बल मैंने?- अक्स
इस ब्लॉग में शामिल हैं मेरे यानी कि अतुल सती अक्स द्वारा रचित कवितायेँ, कहानियाँ, संस्मरण, विचार, चर्चा इत्यादि। जो भी कुछ मैं महसूस करता हूँ विभिन्न घटनाओं द्वारा, जो भी अनुभूती हैं उन्हें उकेरने का प्रयास करता हूँ। उत्तराखंड से होने की वजह से उत्तराखंडी भाषा खास तौर पर गढ़वाली भाषा का भी प्रयोग करता हूँ अपने इस ब्लॉग में। आप भी आन्नद लीजिये अक्स की बातें... का।
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सोमवार, 4 जुलाई 2016
मैंने सुना कि पहाड़ मर रहा है- अक्स
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