आज एक छोटी सी चर्चा सनातन काल गणना पर:
अजर अमरता: जो मैंने जाना जो मैंने माना
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ब्रह्मा जी के एक दिन अर्थात १ कल्प में, १४ इन्द्र, १४ मनु मृत्यु को प्राप्त होते हैं और इनकी जगह नए देवता इन्द्र का और मनु का स्थान लेते हैं। इतनी बड़ी ही ब्रह्मा की रात्रि होती है। दिन की इस गणना के आधार पर ब्रह्मा की आयु १०० वर्ष होती है और फिर ब्रह्मा भी मृत हो जाते हैं,और तब कोई दूसरे देवता ब्रह्मा का स्थान ग्रहण करते हैं। ब्रह्म तत्व ग्रहण करता है।
ब्रह्मा की आयु के बराबर विष्णु का एक दिन होता है। इस आधार पर विष्णु की आयु १०० वर्ष है।
फिर विष्णु भी मृत हो जाते हैं और एक नयी शक्ति उनका स्थान लेती है, विष्णु तत्व को ग्रहण कर।
विष्णु की आयु के बराबर शिव का एक दिन होता है। इस दिन और रात के अनुसार शंकर जी की आयु १०० वर्ष होती है। फिर शिव मृत्यु को प्राप्त होते हैं और फिर एक नयी शक्ति शिव बनती है, शिव तत्व को ग्रहण कर।
जिस एक चतुर्युग (सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग,और कलियुग) का ज्ञान हम रखते हैं, मनुष्य जाती रखती है वैसे ७१ चतुर्युगों के बराबर एक मन्वन्तर होता है, एक मनु का, एक इंद्र का जीवन होता है। और अभी तो सप्तम (7वाँ) मन्वन्तर चल रहा है। अर्थात अभी तक ६ मनु और ६ इंद्र मृत हो चुके हैं। और 7वें मनु तथा 7वें इंद्र का काल चल रहा है।
सब कुछ नष्ट होता है किन्तु जो कभी नष्ट नहीं होता उसे प्रकृति कहते हैं। प्रकृति को छोड़कर सबकुछ नश्वर है, मृत्यु को प्राप्त होता है, फिर से जन्म लेता है। हर काल में हर पल बस ये ही चलता है "जीवन और मृत्यु" । ये ही अनन्त अनाद चक्र है, ये ही सनातन है। स्वर्ग और नर्क भी अस्थायी है। अगर आप समझते हैं की आप सदा ही स्वर्ग में रहेंगे या नर्क में ऐसा नहीं है। सनातन पद्धत्ति में ये अनन्त काल तक चलने वाला चक्र है और इस चक्र से मुक्ति संभव नहीं है। आपका एक निश्चित स्थान, निश्चित पद, निश्चित आयु, निश्चित कार्य, निश्चित भूमिका निर्धारित है, फिर ये आपका विवेक है कि आप उसका निर्वहन करते हैं या नहीं और अगर निर्वहन करते हैं तो किस प्रकार करते हैं।
- अतुल सती 'अक्स'
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