कौन है ये शिव?
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कह दो शिव के सर से बहती,
वो गंगा धार नहीं,
जिस रक्तिम आसन पर बैठा,
क्या वो मूलाधार नहीं,
नीलकंठ नहीं विशुद्धि,
त्रिनेत्र में आज्ञा नहीं,
स्वादिष्ठान शिवलिंग दर्प नहीं,
और क्या
मणिपुर में कोई सर्प नहीं।
त्रिशूल नहीं है इड़ा-पिंगला
सुषुम्ना बीचों बीच नहीं।
डमरू नहीं अनाहद यंत्र,
नशा, क्या नाड़ी शुद्धि तंत्र नहीं?
क्या गजचर्म उसका कवच नहीं?
नंदी काम विजय पताका नहीं?
सड़ता,गलता,जलता,बुझता शव है जो,
उस से प्रकट स्वयंभू,
बोलो क्या वो शिव नहीं?
हिमालय के उत्तुङ्गशिखर,
क्या सहस्त्रार के पङ्कज दल नहीं?
श्वास ह्रदय का स्पंदन,
क्या तांडव की तरकल नहीं?
जिस शिव का है सब ध्यान करते,
बोलो !
वो किसके ध्यान में रहता मगन?
मिश्रित हैं उसमे भी मुझजैसे,
अग्नि, जल, पवन, धरा और गगन,
वो भी तो जलता,बहता,उड़ता रहता,
कठोर कभी तो शून्य सा खोया रहता।
वो शिव मेरा ध्यान नहीं,
और मैं भी उसका ध्यान नहीं,
फिर भी वो मुझमे है खोया,
और मैं भी उसमे हूँ खोया,
इसका उसको,
इसका मुझको,
अभिमान नहीं।
उसमे,मुझमे,तुझमे,
इसमें,उसमें,
कुछ भेद नहीं,
बस इतना हमको ज्ञान नहीं।
- अतुल सती 'अक्स'
https://atulsati.blogspot.in/2017/08/blog-post_24.html
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