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शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

कभी तो

कभी तो,
अपनी यादों की ही तरह तुम खुद भी चली आओ।
मैं सूख रहा हूँ एक पेड़ की तरह,
मेरी शिराओं में बहने वाला पानी,
मेरी आँखों का आँसू तो नहीं बनता,
पर फिर भी आँखों की कोरों से रिसकर भाप हो जाता है।
जाने कैसी बरसात है तुम्हारी यादों की,
ये जितना जम कर बरसती हैं,
उतना ही मैं सूखता जाता हूँ।
कभी तो,
अपनी यादों की ही तरह तुम खुद भी चली आओ।
अब तो बस एक सूखा ठूँठ भर रह गया हूँ,
तुम गर जो एक आखिरी बार,
बस मुझे छू भर लोगी,
तो,
तो,
मैं जल उठूँगा धूधू करके,
के तुम्हारी यादों की बरसात केवल
सुलगाती है मुझे,
बेहद तकलीफ देती है मुझे,
अपनी गिरफ्त में और जकड़ती हैं मुझे,
सुलगाती हैं और बस तरसाती हैं मुझे।
सुनो !!!
सुनो न प्रिये!!!
आज़ाद करदो मुझे अपनी यादों से,
और
छू लो मुझे एक दफा फिर तसल्ली से,
के सुकून हासिल हो मेरी रूह को,
बस एक आखिरी बार और 
लिपट कर मुझसे,
तुम जला लो मुझे,
कितनी दफा यादों के सिरहाने में,
सुलगता सुलगता सोया हूँ मैं,
और तुम,
हर दफा अपनी यादों को भेज देती हो, 
कभी,
ख़्वाबों में ही सही एक बार तो मिलने आ जाओ,
कभी,
कभी तो,
अपनी यादों की ही तरह तुम खुद भी चली आओ।

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