आसमान सतरंगी कहता हूँ
बादलों के साथ खेलता हूँ
तारों की चादर ओढ़ कर,
चाँद को झिलमिल बहता हुआ,
वो जो रात को नदी को देखते हुए,
दिखता है न,
उसे,
हाँ उसी झिलमिल बहती चाँदनी को अपनी आँखों में समेटता हूँ।
और लोग कहते हैं
कि मैं बच्चों सी बातें करता हूँ।
जब अचानक से एक तितली घूमती है आसपास,
और हवा में उड़ते हुए आता एक सेमल का कपास,
कोई कली कहीं जब भी खिलती है,
आहा!
बारिश की मिटटी से सौंधी हवा महकती है,
मैं नाचता हूँ, गुनगुनाता हूँ।
और लोग कहते हैं
कि मैं बच्चों सी बातें करता हूँ।
रात हुई तो जुगनू पकड़ कर मैं,
छोड़ देता हूँ आसमान में तारे बनने को,
और जब चलता हूँ नंगे पाँव और मखमली लगे ओंस से भीगी घास,
कैसे कोई भूल सकता है वो अनूठा एहसास।
मैं आज भी उसी एहसास को तरसता हूँ,
और तुम कहते हो
कि मैं बच्चों सी बातें करता हूँ।
-अतुल सती अक्स
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