ऊँच नीच,
ये जात धरम सब,
देवालय में होता है।
मदिरालय या,
वैश्यालय में,
ये दीनधरम,
कहाँ होता है।
मदिरालय में ,
जाके खुदको,
जग से दूर,
भगाते हैं।
घर को अपने,
स्वाहा कर के,
कैसी प्यास,
बुझाते हैं।
वैश्यालय में,
आते सज्जन,
छुप कर आते,
जाते हैं।
किसकी बीवी,
किसकी बेटी,
बस नोंच नोंच कर,
खाते हैं।
अट्हास करता,
नपुंसक पौरुष,
सिसकता है,
नारीत्व यहाँ।
भोग विलास,
और लूट खसोट,
बस ये है इनका,
पुरुषत्व यहाँ।
परनरगामी जो,
हुई,
वो तो है,
नीच यहाँ।
परनारीगामी जो,
है बना,
फिर वो कैसे,
उच्च यहाँ?
कौन है साक़ी,
कौन हमबिस्तर,
मतलब किसे,
कहाँ होता है?
तन की भूख,
मिटाने वाला,
बस गिद्ध बना,
यहाँ होता है।
ऊँच नीच,
ये जात धरम सब,
देवालय में होता है।
मदिरालय या,
वैश्यालय में,
ये दीनधरम,
कहाँ होता है।
-अतुल सती #अक्स
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