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सोमवार, 15 अगस्त 2016

पागल की बातें

मैं थक गया हूँ पता ये सॉफ्टवेर इंजीनियर का बोझ लिए हुए,ये कवि, ये फिलॉस्फर, ये इंसान, ये हिन्दू, ये भारतीय, ये पहचान लिए हुए,   एक पति, एक दोस्त , एक बाप, एक जँवाई, एक भांजा, भाई ,भतीजा, गुरु, चेला, एक बेटे का बोझ लिए,
बहुत ही ज्यादा घुटन होती है मुझे,
ये सब निभाते निभाते, एक्टिंग करते करते,  
बहुत ही ज्यादा थक गया हूँ मैं,
बहुत ज्यादा।
मैं सबके लिए अलग अलग हूँ ??? पर क्यों??? पता नहीं।
सब मुझे कहते हैं ऐसा करो, ऐसा नहीं, ये नहीं कह सकते, वो नहीं कर सकते, भावनाएं, संस्कृति, खानदान, रिश्तेदारी, उफ़ ये समाज????
क्या कल था, क्या कल होगा???? और क्या है आज?        
मैं कौन हूँ? क्या चाहता हूँ? क्या सोचता हूँ? क्यों सोचता हूँ? किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।  
पर क्यों फर्क नहीं पड़ता? बताओ ???
लेकिन वहीँ मेरे कुछ भी करने तो छोड़ो,  कहने भर  से सबको फर्क पड़ता है,
किसी की नाक काट जाती है, कोई शर्मसार हो जाता है,
किसी की भावनाएं आहत हो जाती हैं.,
प्रमोशन रुक जाता है,
पर क्यों???
जब होने न होने से, मेरी किसी भी मनोभाव से फर्क नहीं तो प्रकटीकरण से क्यों???
और इतने सारे किरदारों का बोझ मैं कब तक ढोता रहूँ???? बोलो ???       
कब तक ? ऐसा ही रहूँ??? कब तक?
कब तक अलग अलग किरदार निभाऊं?
कहीं कभी किसी दिन सब एक साथ मिल गए तो??? तब क्या रूप दिखाऊं?
बोलो कब तलक ये बोझ लिए घूमूँ ??? कौन जवाब देगा मुझे ???
अब आप बताओगे मुझे कि वो भी मैं ही हूँ जो जवाब देगा इसका?
अब अगर मेरी हर बात का जवाब मैं ही हूँ, जिम्मेदार भी मैं ही हूँ, तो आप क्यों हो?
  
मेरी ज़िन्दगी में ऐसा कुछ नहीं है जो मैंने खोजा हो,
मुझे सब कुछ मेरे बारे में,   
सच में, सब कुछ दूसरों ने बताया।
पैदा हुआ तो मेरा नाम बताया , जाति, पहचान बताई,
डिग्री मिली तो बताया कि अब तू इंजीनियर हो गया,
कविता लिखी तो बोले कवी हो गया,
कभी फिलॉस्फर तो कभी कुछ,
और फिर मैं पिस रहा हूँ इस चक्की में,
क्यों न पिसुं? क्योंकि सब पिसते  हैं? सब पीस रहे हैं, सब पिस रहे हैं ? तुम भी पिसो।
अब आप कहोगे की अगर इतनी दिक्कत है तो अपने मन की करो,
मन की कहो।   
लेकिन आप इस बात को पसंद तो करोगे लेकिन खुल के सपोर्ट नहीं करोगे,
क्योंकि,
फिर आपके अहं के चीथड़े उड़ जायेंगे पता।
मैं तो ...      
खैर रहने दो...
छोड़ो भी !!!
मैं तो पागल ही हूँ। :)
और आप ही ने बोला है कि,
पागल की बातें नहीं सुननी चाहिए। है न?
         - अक्स 
      

         

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