अखबार सुबेर सुबेर सबसे पहले चाहिए होता है। सर माथे पर होता है। एक एक बात जो जो वो अखबार बोलता है सब पढ़ते हैं बल हम। सब बींग्ते हैं, कखि खुटु लगी ता वीते उठै कि अपर बरमंड मा छुएकी शिरोधार्य करते हैं। सुबेर सुबेर वो सबसे ज्यादा प्रिय होता है और सर्वोच्च सम्मान पाता है। (रिजल्ट याद है? बोर्ड एग्जाम का).कुछ समय बाद जब वो पुराना हो जाता है और अखबार पूरा पूरा यक़ीन करने लगता है अपने रीडर पर तो उसकी हम जिल्द बनाते हैं, उस अखबार की आड़ में हम अपने कर्मों की किताबों को, कॉपियों को छुपाते हैं। उस अखबार की आड़ में हमारे सारे राज़ छुप जाते हैं। बींगै बल आप कुछ?.अब भैजी अखबार हुयगी कुछ पुराणु मतलब सरकार बणी, रीडर नेता हुयगी, मंत्री हुयगी, अब क्या? अब अखबार ते काट पीटि की कखि कै रैक मा बिछौंदा छन। अर नेता की कज्याण उसी के ऊपर पकी पकाई रोटी संभालेगी। अखबार गर्मी से फुक जाता है पर बेचारा कर भी क्या सकता है, अब तो उसने चुन लिया था न कि किसके घर जाना था?.अब यन्न च भाईसाहब नेता के परिवार को भैर गार्डन मा जाना है बल। वहां थोड़ी मिट्टी थोड़ी गन्दगी ठैरी तो कौन काम आएगा बल? कौन है वो जिसे बिछाया जायेगा और किसके ऊपर उसका पूरा परिवार बैठेगा अपने ढेबरे टिका कर?अख़बार !!! टडा !!!!!!!!!!!!!!.वो बेचारा अखबार किसने क्या नाश्ता किया किसने नहीं? किसने क्या खाया किसको कब्ज? सब समझता है।नेता के परिवार की जायदाद है वो, अब वो मालिक ठैरे, जैसे मन करें उनका वैसा ही तो उपयोग करेंगे बल।पर इथा ही दुर्गति नि च अखबारे, नेता जी का परिवारन कलेऊ खैली अर गन्दगी हुयगी त अखबारन ही तो उठाएंगे बल उसे, गिरी हुई दाल, सब्जी, चटनी सब अखबार में ही समेटा जायेगा।.अब तक अखबार की यात्रा सर से शुरू हुई, पैर लगा तो सर पर छुआ। फिर उसे काट पीट कर कभी ज़िल्द बनाया, कभी कहीं बिछाया, कभी उसी पर बैठे, कभी उसी से साफ़ सफाई की। पर आगे अभी उसके नसीब में बहुत कुछ था।...बल नेता जी को सर्दी लग रही थी तो गर्मी के लिए अख़बार को ही जला कर दंगे करवाये जायेंगे और शाखों, दरख्तों को जला कर जंगल में आग लगाई। बॉन फ़ायर कहते हैं इसे बल वो।पर यथा ही होंदु त भलू छौ, पर रे निर्भगी !!! नेता जी का नातिन पॉटी कर ली बल, अब वुई अखबार, जु कभी बरमंड मा धरी छौ वेन ही अब पूठा पुंजोणा छन।तो समझे बाबू, जब तक अखबार ने अपनी खबर नहीं सुनायी थी, उसने नहीं बताया कि रीडर के लिए उसके पास क्या खबर है तब तक वो शिरोधार्य था और अब?????..किसे चुना था ये भी याद रखो। कहीं तुम भी पूठा बर्थने के काम तो नहीं आरहे?कहीं तुम भी जल जल कर अपने नेता को गर्मी तो नहीं दे रहे, दंगे करवा कर, अपने पूर्वजों (पेड़) को जला कर?वोटर और अखबार में कोई अंतर मिले तो बताना। कहीं तुम भी वोटर के नाम पर अखबार तो नहीं बन रहे न? सोच समझ कर हाँ...... किसे अपना रीडर चुन रहे हो? रद्दी में जाने का ऑप्शन तो हमेशा ही है।- अतुल सती 'अक्स'https://atulsati.blogspot.in/2017/01/blog-post_31.html
इस ब्लॉग में शामिल हैं मेरे यानी कि अतुल सती अक्स द्वारा रचित कवितायेँ, कहानियाँ, संस्मरण, विचार, चर्चा इत्यादि। जो भी कुछ मैं महसूस करता हूँ विभिन्न घटनाओं द्वारा, जो भी अनुभूती हैं उन्हें उकेरने का प्रयास करता हूँ। उत्तराखंड से होने की वजह से उत्तराखंडी भाषा खास तौर पर गढ़वाली भाषा का भी प्रयोग करता हूँ अपने इस ब्लॉग में। आप भी आन्नद लीजिये अक्स की बातें... का।
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मंगलवार, 31 जनवरी 2017
कखि तुम भी अखबार (जन वोटर) तो नहीं?
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