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शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

मृत्यु मेरी एक प्रेयसी


हर पल मुस्कुराती हुई दिखती है,
आलिंगन का रोज आग्रह करती,
नृत्य करती, हँसती इठलाती,
बाहें फैलाये मुझे बुलाती,
मुझे वो रोज नृत्य करती सी दिखती है, 
मुझे तो मृत्यु मेरी एक प्रेयसी लगती है।     

मृत्यु पश्चात् ही तो शुरू है जीवन,
एक अनंत नभ में होगा विचरण,
लेखा जोखा, पुण्य पाप,
सब बातों का होगा हिसाब,
मुझे इस जग की हर बात पराई लगती है 
मुझे तो मृत्यु मेरी अपनी, सगी लगती है। 

हर दिन हर पल सम्मुख मेरे,
प्रश्न करे जीवन बड़े गहरे,
रिश्ते नाते, जीवन और मरण,
कौन शैतान, कौन भगवन?
हर एक सवाल का जवाब लगती है,
मुझे तो मृत्यु अंतिम शराब लगती है।

तिलक टोपी पगड़ी क्रॉस वालों का,
हर मजहब की अपनी रंजिशों का,
उनके जूठे,
और झूठे हर एक साजिशों का,
एक एक करके पर्दाफाश करती है,
मुझे तो मृत्यु जीवन का सार लगती है।
                 
                     -अतुल सती 'अक्स'
      


                
  



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