रामायण काल के घटनाक्रम: मेरी दृष्टि में
रावण ब्राह्मण पुत्र था और माता रक्ष कुल की जो ब्राह्मण कुल से ब्याहता हो कर ब्राह्मण हो गयी थी, फिर भी रावण को रक्ष कहा गया। जबकि संतान हमेशा ही पितृ पक्ष कुल का प्रतिनिधित्व करती है, मेरी दृष्टि में रावण सदैव ही ब्राह्मण कुल श्रेष्ठ रहा है जो आर्य समाज के लिए सदैव चुनौती रहा और आर्य सभ्यता के अनुसार पथ भ्रष्ट हो गया था, क्योंकि रावण खुद एक आर्य पुत्र था और उसने आर्यों का साथ देने के बजाय रक्ष जाति के उत्थान के बारे में सोचा।
ठीक वैसे ही जैसे बाली और सुग्रीव जो की इंद्र-आरुणि और सूर्य-आरुणि पुत्र होते हुए भी वानर कुल श्रेष्ठ कहलाये और वो भी आर्य नहीं थे, वानर जाति में जो बलवान होता था समूह का नेतृत्व करता था समस्त स्त्रियां उसकी दासी होती थी ये आज भी वानर जाती में होता है किन्तु ये आर्य सभ्यता के अनुरूप नहीं था इसीलिए श्री राम को क्षत्रीय धर्म को त्याग कर छिप कर बाली संहार करना पड़ा।
विभीषण भी रावण और कुम्भकरण की तरह ब्राह्मण-रक्ष पुत्र था किन्तु उसे सम्मान ब्राह्मण रूप में मिला क्योंकि उसने आर्य सभ्यता के सबसे प्रतापी राजा योद्धा श्री राम का साथ दिया किन्तु धर्म का साथ देने के पश्चात् भी उसने अधर्म किया, अपने ही अग्रज के साथ छल किया और मृत्यु द्वार तक पहुँचाया। लेकिन श्री राम का साथ देने के बाद भी आज तक किसी और का नाम विभीषण नहीं रखा गया।
रामायण में अगर माली-सुमाली और मंथरा की बहस न हुई होती और मंथरा का क्रोध रक्ष जाति के प्रति न होता, नारद-कैकयी और मंथरा अन्य रानिओं द्वारा राम के वनवास की सुनियोजित उपक्रम न करते, देवता दंडकारण्य में अलग अलग जातियों में अपनी संतान उत्त्पन्न न करते और अगस्त्य ऋषि ने अभूतपूर्व समन्वयन का कार्य न किया होता आर्य और अनार्य जातियों के बीच, तो संभवतः रामायण कुछ अलग प्रकार की होती।
असल में रामायण का प्रचार जितना ज्यादा अच्छाई और बुराई के युद्ध के रूप में दिखाई देता है उससे कई अधिक ये आर्य-अनार्य सभ्यताओं का युध्द था।
- अक्स