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बुधवार, 14 अगस्त 2019

लघु कथा: एक छोटी सी बात - अक्स

पति ऑफिस जाने ही वाला था कि तभी पत्नी का फोन बजने लगा।  फोन पत्नी की माँ का था। 
पत्नी ने फोन उठाया और बात करने लगी। 
" हाँ माँ !!! 
अरे बहुत काम पड़ा हुआ है, सांस लेने की फुर्सत ही नहीं है। हाँ हाँ ये बस अभी निकल ही रहे हैं ऑफिस के लिए। "

शाम हो चुकी है और पति वापस घर आ चुका है,
" हाँ माँ !!!
अरे बहुत काम पड़ा हुआ है, सांस लेने की फुर्सत ही नहीं है। हाँ हाँ ये बस अभी आ  ही रहे हैं ऑफिस से। चलो फिर किसी दिन फुर्सत से बात करेंगे। अच्छा बाय !"

माँ ने सोचा "बेचारी कितना परेशान है, हमेशा बेचारी का काम छूट ही जाता है, कितना ज्यादा काम है। कल इससे मैं काम के बारे जरूर बात करुँगी जब इसकी ननद की सास की देवरानी की बहु की माँ और उसकी जेठानी की बहन की बेटी की खटपट का चटपटा किस्सा सुनूँगी। "

note: "ये काल्पनिक कथा है इसका आपके जीवन के किसी भी व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है, और अगर कोई सम्बन्ध पाया भी जाता है तो ये मात्र एक संयोग होगा।        
     

गुरुवार, 1 अगस्त 2019

खाली हाथ

वैसे तो खाली हाथ ही रहता हूँ मैं अक्सर,
पर कभी कभी कुछ पथ्थर उठा लेता हूँ हाथों में,
मेरे पीछे अक्सर लगा रहता है भूत मेरा, मेरे भूत का,
वो टोकता है, रोकता रहता है मुझे,
जाने ही नहीं देता उस दुनिया में जिसे कहते हैं भविष्य हम,
उसे ही मारके भगाने को कुछ पथ्थर उठा लेता हूँ हाथों में,
वो भाग जाए, तो तुम खींचने लगते हो मेरी डोर पकड़ कर,
पर एक बात साफ़ करदूँ मैं ऐ ज़िन्दगी!
तुमने जो सिरा मेरा थामा है न हाथों में अपने,
उसका दूसरा कोई सिरा है ही नहीं।
अनगिनत सिरे हैं जो एक गिरह से बँधे हैं,
जैसे फिरकी हो कोई।
मैं, उसी गिरह में फँसा हुआ हूँ ज़िन्दगी!
आज़ादी चाहता हूँ इस बंधन से,
क्या कहा? 
आज़ादी तू दिलाएगी?
जानता हूँ मैं, तू उसे नहीं खोल पायेगी।
तू जब मौत बनकर आएगी,
खुदबखुद तू समझ जायेगी,
तेरे आते ही ये गिरह खुल जाएगी।
तब मैं खाली हाथ ही रहूँगा,
भूत का भूत, भविष्य का डर,
सब रह जायेंगे उन डोर में बंधे,
मुझे आज़ादी मिल जायेगी।
तू जब मौत बनकर आएगी,
खुदबखुद तू समझ जायेगी,
तेरे आते ही ये गिरह खुल जाएगी।
 -अक्स