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मंगलवार, 24 मई 2022

मैं कपास की बाती

मैं कपास की बाती हूं,
मैं तेरा विश्वासघाती हूं,
तुम तेल बन मुझे गले तो लगा लोगे,
पर मुझ पापी को तारे बिना,
मुझ विश्वजयी को हारे बिना,
कैसे दीप बना लोगे?
भक्ति की अग्नि कैसे जला लोगे?

मैं तो डूबा हूं इस माया में,
धंसा हुआ हूं इस काया में,
इस काया से दीपक बन जायेगा,
ये अक्स भी बाती हो जायेगा,

तुम बोट के मुझको बाती बना लोगे,
तुम तेल बन मुझको समा लोगे,
पर बिन भक्ति के मैं बुझा हुआ,
चरणों में तेरे मैं रखा हुआ,
मैं क्या करूं जो तुम मुझे अपना लोगे?
क्या करूं जो तुम मुझे दीप बना लोगे?

मैं कपास की बाती हूं,
मैं तेरा विश्वासघाती हूं,
तुम तेल बन मुझे गले तो लगा लोगे,
पर मुझ पापी को तारे बिना,
मुझ विश्वजयी को हारे बिना,
कैसे दीप बना लोगे?
भक्ति की अग्नि कैसे जला लोगे?

                                                          - अतुल सती 'अक्स'

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