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गुरुवार, 20 अगस्त 2015

धै !!! मेरा घौरे की

सुन मेरी चखुली, मेरी लाटी,
चल अपरा घोर चलदन अब,
यख बस असमान ही असमान च, 
कखि न त धरती च, न पहाड, न कोई बौण, 
न कोई डाली बोठली,
कु जाणि वख घोर मा, बौण कण होला?
पन्देरा कण होला वु घुघूती कण होली?  

सुन मेरी चखुली, मेरी लाटी,
चल अपरा घोर चलदन अब,
वखि वे बौण मा, 
जू जलणु छौ ये जेठ मा, जू जेठ बारो मासी छौ,
वखि जख हमारू अपरू घौर छौ,
वे बौण मा जू वु बरगदो डालु च,
जू फुकेगी ये विगास मा, 
हमारा बरगदे का विनाश मा,
वे मा मौल्यार ए जाली,
मेरी लाटी, मेरी चखुली,
तू जु एक बार घोर ऐ जाली।         

देख दी वे बौण मा सब्बि डाली सूखी गेन,
वेका सारा पोथ्ला फुर्र करी के उड़ी गेन,
सुन मेरी चखुली, मेरी लाटी,
बोड़ी की जू घौर हम जोला,
यु अमर जेठ खत्म हुए जालु,
तेरा मेरा अर ये बोण का, ये बरगद का,
आँख्यों का बस्ग्याला का बाद,
जू बसंत औलू,
वू ही सदानि रेलू,       
सुन मेरी चखुली, मेरी लाटी,
चल अपरा घोर चलदन अब,
वु पुरखों कू घौर,
हम पोथ्लों कु ठौर,
धै लगौणु च हमते,
चल अपरा जोड़ों ते खोजदन  अब, 
सुन मेरी चखुली, मेरी लाटी,
चल अपरा घोर चलदन अब। 

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