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बुधवार, 31 मई 2017

हक़ीक़त

(1)
जब वक़्त का बरसना ख़त्म हुआ,
तब उम्र भी खुदको सुखा ही गयी।

(2)
जब पानी, पानी-पानी हुआ,
तब आग भी आग बुझा ही गयी।

(3)
जब शहर में खुदा का क़त्ल हुआ,
तब उसकी भी हक़ीक़त आ ही गयी।
(4)
जब रंजिश को इश्क से इश्क हुआ,
तब वो भी मुहब्बत निभा ही गयी।

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