तुम्हे तो पता ही है सब,
ये सुनहरा धागा मेरा बुना है,
सुन्दर लगता है न?
मेरा ये रेशमी धागा?
पर,
असल में,
मैं उलझा हूँ अपने ही ख्यालों में,
उलझता उलझाता, सुलझता सुलझाता,
और,
खुद को हमेशा ही पाता हूँ जकड़ा हुआ,
अपने ही महीन रेशमी धागे से,
तुम्हे तो पता ही है सब।
मैं नहीं तोड़ पा रहा हूँ इस बँधन को,
फँसा हूँ पर जीने को साँस भी तो लेनी है।
और यहाँ,
हर आती जाती साँसों के स्पंदन से,
निकल रहा है ये रेशमी बँधन मुझसे,
लेकिन,
मुठ्ठी भर ही साँसों का पिटारा है मेरे हिस्से में,
तुम्हे तो पता ही है सब।
साँसे मेरी हिस्से की जितनी भी मैं खर्च करता हूँ,
उतना ही इस धागे को बुनता हूँ,
तुम्हे जो पसंद है मेरा ये धागा बुनना,
तुम भी जानते हो और मुझे भी पता है,
ये धागा मेरे काम का नहीं,
ये तुम्हारे लिए है कीमती,
मेरा तो ये एक बंधन है मेरे गले में,
मेरी ख़त्म होती साँसों की परिणीति,
मेरे साँसों की चिता की ठंडी बुझी हुई राख,
तुम्हे तो पता ही है सब।
मुझे तुमने ही तो सिखाया था रेशम बुनना,
मुझे भी कहाँ पता था कि ये शौक जानलेवा होगा,
अब दम घुट रहा है तो बता रहा हूँ मैं,
शायद कल बता भी न पाऊँ,
मेरी साँसे मेरे जीने के लिए कहाँ थीं,
बल्कि ये तो मेरी मौत तक,
तुम्हारे लिए बस रेशम बुनने तक थीं,
मुझे पता है,
मेरे मरने पर तुम इसे हमारा प्रेम कहोगे,
हमारा समर्पण कहोगे,
कहोगे के, आखिरी साँस तक तुम्हारे लिए रेशम बुना मैंने,
पर,
मुझे पसंद नहीं था कभी भी रेशम बुनना,
मैं तो बस देखना चाहता था शहतूत के फूलों को,
कलिओं को, पत्तों को, शाखों को, फलों को,
शहतूत ही नहीं बल्कि हर घास, हर पौधे, सूखे हुए दरख्तों को,
महसूस करना चाहता था हवा को, पानी को, तुमको, प्रेम को,
मैं तो बस जीना चाहता था, सिर्फ जीना,
अपने हिस्से की साँसों से कुछ पल का जीवन चाहता था,
खैर !!!
तुम जानते थे सब,सब कुछ,
मैंने कहा था तुमसे,
मुझे जाने दो, जीने दो,
तुम्हारा वादा था मुझसे कि मुझे जाने दोगे,जीने दोगे,
मैं भी जानता हूँ तुमने क्या किया,
तुम्हे तो पता ही है सब,
कि,
तुम्हे तो पता ही था सब।
- अक्स