एक कहानी सुनाता हूँ बल जरा टक्क लगेकी सुनना वा।
भोत पुरानी बथ है एक कुआँ था। वहाँ पर बहुत ही सुन्दर सुन्दर मेंढक रहते थे और उस ज़माने में उनकी जबान "टर्र-टर्र" नहीं थी। उस टाइम पर वो मधुर सुमधुर आवाज़ के धनी थे। एक से एक टैलेंटेड थे।
वो एकदम मस्त मौला थे और उसी कुएं से दिखने वाली रौशनी को आकाश समझते थे। उनकी सुबह और शाम मतलब दिन बहुत ही छोटे थे रात लम्बी थी बहुत। उन्हें तो ये भी नहीं पता था कि उस कुएँ के बाहर भी कोई दुनिया है, स्वछंद प्रकृति का एहसास है। वहां रहा भी जा सकता है और जिया भी जा सकता है।
अब कुछ बहुत ही सुरीले मेंढकों ने बहुत ही सूंदर तान लगाई। अपनी मेहनत और साधना से वो उस कुँए से अलग अलग तरीकों से, साधनाओं से, किन्तु अपने खुद के प्रयासों से बाहर निकल गए। उस कुएँ से बाहर निकलने में उनकी अथक मेहनत थी।
कुछ मेंढक दिन दोपहरी में निकल पाए पर एक मेंढक जिसकी आवाज़ बहुत सुरीली थी और जो सबसे ज्यादा चर्चित और यशश्वी था उसने जाते हुए एक राग आलापा। वो राग उसका खुद का बनाया हुआ था और वो था "टर्र टर्र" राग।
जिस वक़्त वो मेंढक निकल रहा था कुँए से ठीक उसी वक़्त पूनम का चाँद आसमान में उस कुएँ के ऊपर छाया हुआ था। टर्र टर्र अलाप करता हुआ जब वो मेंढक बाहर निकला जिसके चारों ओर धवल चाँद था और जिससे कुएं के तल से देखने पर वो घटना दैवीय सी लग रही थी। वो अकेला मेंढक था जो रात को बाहर निकल पाया।
ये कहानी कथा का बाद क्या हुए वैते सुना अब।
वैका बाद कुएँ के तली पर रहने वाले मेंढकों को जाने क्या हुआ बल सभी केवल "टर्र टर्र" राग का अलाप करते रहे और उस पहले मेंढक को कॉपी या कहिये उसके गीतों को कवर करने लगे। अपने राग अपने गानों की जगह बस "टर्र टर्र" शॉर्टकट।
अफ़सोस वो मेंढक बहुत से राग गा सकते थे अलग अलग और बहुत ही सुन्दर गीतों को रच सकते थे पर अफ़सोस आज भी वो मेंढक उसी कुएँ में हैं बस अलग अलग तरीकों से "टर्र टर्र" करते हैं सब के सब। जिसकी वजह से वो पहला "टर्र टर्र" गीत जो सुरीला था आज बस एक शोर बन कर रह गया है। जब उन मेंढकों को बोला गया बल कुछ अफरु भी गाओ कब तक दूसरों के गानों को गाओगे? दुसरे की मेहनत को अपना बनाओगे? तो जानते हो उन मेंढकों ने टर्र टर्राते हुए क्या कहा?
अफ़सोस वो मेंढक बहुत से राग गा सकते थे अलग अलग और बहुत ही सुन्दर गीतों को रच सकते थे पर अफ़सोस आज भी वो मेंढक उसी कुएँ में हैं बस अलग अलग तरीकों से "टर्र टर्र" करते हैं सब के सब। जिसकी वजह से वो पहला "टर्र टर्र" गीत जो सुरीला था आज बस एक शोर बन कर रह गया है। जब उन मेंढकों को बोला गया बल कुछ अफरु भी गाओ कब तक दूसरों के गानों को गाओगे? दुसरे की मेहनत को अपना बनाओगे? तो जानते हो उन मेंढकों ने टर्र टर्राते हुए क्या कहा?
"भैजी इसे बल टर्र-टर्र-टर्रवर कहते हैं, टर्र-टर्र-टर्रम्प्रोवाईजेशन कहते हैं इसे। हम बल फुन्दिआ मेंढक हैं आजकल की जनरेशन। तुम्हारा बल मैशप-टर्रशप करदेंगे। "
अब बोलो बल नक़ल नक़ल मार कर नकलाकार हैं ये और कलाकार कहते हैं खुद को बल। कण लगी बल ये कहानी बताना जरा।
- अतुल सती 'अक्स'
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