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सोमवार, 28 मार्च 2016

बचपन के किस्से

कंचों की खनक, 
पोसम्पा के किस्से,
छुपनछुपाई की खिंचाई,
पकड़म पकड़ाई वाली लड़ाई,
बर्फी, सात घर की कहानी, 
पिठ्ठू की गेंद से सुताई,
वो भागते भागते थक जाना,
पर मैदान का खत्म ही न होना,
पीठ पर साथी को लेकर दौड़ना,
नए घर की नींव खुदी हो कहीं,
उसकी भूल भुलैया में खोना,
रेत के ढेर पर हाथों से सुरंग बनाना,
छत पर नहीं मैदान पर पतंग उड़ाना,
आम के बागीचे में चैन से आम तोड़ कर खाना,
अमरुद के पेड़ पर छुप जाना,
कभी नदी किनारे पथ्थर को पानी पर टप्पे खिलाना,
तो कभी पथ्थर नदी पार कराना,
बारिश हुई जो कभी जोरदार तो मैदान पर,
गलिओं पर दौड़ना भागना,
कागज़ की कश्ती को तैराना,
रात को छत पर लेटकर तारे गिनना,
चाँद पर कभी परिओं को,
तो कभी बूढी दादी को सूत कातते देखना,
प्लास्टिक गला कर बॉल बनाना,
आँगन में होली खेलना,
पीछे के बाग़ में झूले झूलना,
छत पर बैठकर कागज के जहाज उड़ाना,
डेकची में ताज़ा गुनगुना दूध लेकर आना,
पापा के कंधे पर घूमने जाना,
साईकिल के आगे एक छोटी सी सीट होती थी मेरी,
पापा से आगे जिसमे मैं बैठता था ,
रात को माँ जब रोटी बनाती थी तो उसके साथ,
एक कच्ची पक्की छोटी सी रोटी बनाता था। 

सुनो प्रिये !!!
जब अपने बच्चों को जब हम अपने बचपन के ये किस्से सुनाएंगे,
तब क्या वो सच में इसे सच मान पाएंगे?
कहीं नाराज़ हो कर ये न कहें कि क्यों हमने उन्हें अपना बचपन नहीं दिया?
क्यों छीन लिया हमने उनसे उनका अलसाया मासूम बचपन?
क्यों नहीं है चाँद पर वो बुढ़िया सूत काटने वाली?
क्यों नहीं होती है बारिश अब कागज के नाँव वाली?
क्यों नहीं है अब स्वत्रंत बाल मन?
क्यों नहीं अब घर में मेरे आँगन?
क्या जवाब देंगे हम?
बताओ प्रिये,    
जब अपने बच्चों को जब हम अपने बचपन के ये किस्से सुनाएंगे,
तब क्या वो सच में इसे सच मान पाएंगे?

कटु सत्य

कैसे आरुष तुझे मैं, 
ये कटु सत्य बताऊँ?
बालकनी वाले घर में मैं,
तुलसी वाला, 
आँगन कहाँ  से लाऊँ ?

कंक्रीट के जंगल में,
बस मीनारें ही मीनारें हैं,
धुआँ ही धुआँ है सब जगह,
बालकनी से देख आसमान,   
अब तारों को गिनाने वाली,
वो छत कहाँ से लाऊँ?

कबूतर ही कबूतर हैं यहाँ,
घुघुती कहाँ से लाऊँ,
गौरैया कहाँ से लाऊँ?
घर के अंदर ही दो कमरों में,
दौड़ भाग करना,
बाहर बस सड़कें हैं,
खुला खाली मैदान कहाँ से लाऊँ?




दो वक़्त की रोटी कमाने की,
जुगत में रहता हूँ,
दुसरे के मकान में,
अपना किराए का घर जमाता हूँ,
किश्तों को चुकाने की कहानी,
पूरी करते करते,
कैसे तुझे परिओं की कहानी सुनाऊँ?
                  
कैसे आरुष तुझे मैं, 
ये कटु सत्य बताऊँ?
बालकनी वाले घर में मैं,
तुलसी वाला, 
आँगन कहाँ  से लाऊँ ?      - अतुल सती 'अक्स'    



   

मंगलवार, 22 मार्च 2016

एक छौ घोड़ा !!! - - अतुल सती 'अक्स'

घोड़ा एक छौ अर छाँ  टँगड़ा  चार,
होन्दु रेंदु वुए पर भिजाम अत्याचार,  
36 लाटों की छै बल एक सरकार,
त एक टँगड़ी हुए बल 36 बटे चार|
अर जब कचाक हुए एक टँगड़ी पर वार, 
तब बिदकिन 9,  मतलब 36 बटे चार,
तब्बि त एक टँगड़ीन(9 विधायकोंन) मेरा यार !
कर दीनी ये सरकारों  कू बहिष्कार। 

डालिली एक घात अब त पूजन पड़लु हँकार !!!

शुक्रवार, 18 मार्च 2016

क्यों ??? - अक्स


मैं जो कहूँ वो गलत, 
तुम जो कहो वही सही क्यों हो?
नज़र मेरी है,  तो नज़रिया,
किसी और का ही क्यों हो ?

मेरी ज़िन्दगी के सही गलत का फैसला,
तुम कैसे करोगे?
मेरा सफर,  मेरा रास्ता, 
सही है या गलत,तय ही क्यों हो?

किसी ने तस्बीह पकड़ी है, 
किसी ने तुलसी माला जपी है,
हद है !!! उस अनहद को भी जपने की हद, 
आखिर तय ही क्यों हो?        - अतुल सती 'अक्स'