मैं जो कहूँ वो गलत,
तुम जो कहो वही सही क्यों हो?
नज़र मेरी है, तो नज़रिया,
किसी और का ही क्यों हो ?
मेरी ज़िन्दगी के सही गलत का फैसला,
तुम कैसे करोगे?
मेरा सफर, मेरा रास्ता,
सही है या गलत,तय ही क्यों हो?
किसी ने तस्बीह पकड़ी है,
किसी ने तुलसी माला जपी है,
हद है !!! उस अनहद को भी जपने की हद,
आखिर तय ही क्यों हो? - अतुल सती 'अक्स'
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