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सोमवार, 28 मार्च 2016

कटु सत्य

कैसे आरुष तुझे मैं, 
ये कटु सत्य बताऊँ?
बालकनी वाले घर में मैं,
तुलसी वाला, 
आँगन कहाँ  से लाऊँ ?

कंक्रीट के जंगल में,
बस मीनारें ही मीनारें हैं,
धुआँ ही धुआँ है सब जगह,
बालकनी से देख आसमान,   
अब तारों को गिनाने वाली,
वो छत कहाँ से लाऊँ?

कबूतर ही कबूतर हैं यहाँ,
घुघुती कहाँ से लाऊँ,
गौरैया कहाँ से लाऊँ?
घर के अंदर ही दो कमरों में,
दौड़ भाग करना,
बाहर बस सड़कें हैं,
खुला खाली मैदान कहाँ से लाऊँ?




दो वक़्त की रोटी कमाने की,
जुगत में रहता हूँ,
दुसरे के मकान में,
अपना किराए का घर जमाता हूँ,
किश्तों को चुकाने की कहानी,
पूरी करते करते,
कैसे तुझे परिओं की कहानी सुनाऊँ?
                  
कैसे आरुष तुझे मैं, 
ये कटु सत्य बताऊँ?
बालकनी वाले घर में मैं,
तुलसी वाला, 
आँगन कहाँ  से लाऊँ ?      - अतुल सती 'अक्स'    



   

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