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सोमवार, 26 सितंबर 2016

आज

एक दूजे से,

दूर रहकर,

किसी और के,

हमदम बन कर,

आज,

जिन्दा तू भी है,

जिन्दा मैं भी हूँ।


झूठे इश्क को,

सच्चा कहकर,

फिर झूठी,

सारी कसमें खाकर,

आज,

शर्मिंदा तू भी है,

शर्मिंदा मैं भी हूँ।

                               - अतुल सती 'अक्स'     


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