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बुधवार, 25 मई 2022

पहाड़


यू जू गंगा औंदी च तोळ, 
लौन्दी च माँ कू रैबार, 
ऎजा ऎजा बोढ़ी की घोर,
सूणू पड़यूँ घोर बार 

यू जू गंगा औंदी च तोळ, 
लौन्दी च माँ कू रैबार! 
 
गौं अपरू छोड़ी, 
उंदरिओं ते दौड़ी, 
काटिलिन मिन अपरा जौड़
ना मी पहाड़ी ना  मी च देशी 
खुएदिन मिन अपरी पछाण 

पहाड़ !!! पहाड़ !!! पहाड़ !!! पहाड़ !!!
मेरु प्यारु पहाड़ !!!  - २ 

हे मेरा लाटा!!!
गौ का यु बाटा,
यू उकाल उन्धार। 
सिखौंदा छाँ हमते,
बिंगोंदा छाँ हमते,
जीवन कु सरु सार!!!

पहाड़ !!! पहाड़ !!! पहाड़ !!! पहाड़ !!!
मेरु प्यारु पहाड़ !!!  -२  

   -अतुल सती 'अक्स'




मंगलवार, 24 मई 2022

मैं कपास की बाती

मैं कपास की बाती हूं,
मैं तेरा विश्वासघाती हूं,
तुम तेल बन मुझे गले तो लगा लोगे,
पर मुझ पापी को तारे बिना,
मुझ विश्वजयी को हारे बिना,
कैसे दीप बना लोगे?
भक्ति की अग्नि कैसे जला लोगे?

मैं तो डूबा हूं इस माया में,
धंसा हुआ हूं इस काया में,
इस काया से दीपक बन जायेगा,
ये अक्स भी बाती हो जायेगा,

तुम बोट के मुझको बाती बना लोगे,
तुम तेल बन मुझको समा लोगे,
पर बिन भक्ति के मैं बुझा हुआ,
चरणों में तेरे मैं रखा हुआ,
मैं क्या करूं जो तुम मुझे अपना लोगे?
क्या करूं जो तुम मुझे दीप बना लोगे?

मैं कपास की बाती हूं,
मैं तेरा विश्वासघाती हूं,
तुम तेल बन मुझे गले तो लगा लोगे,
पर मुझ पापी को तारे बिना,
मुझ विश्वजयी को हारे बिना,
कैसे दीप बना लोगे?
भक्ति की अग्नि कैसे जला लोगे?

                                                          - अतुल सती 'अक्स'

गुरुवार, 11 जून 2020

माया


मेरा गौला भिटै क़ी, वू कैकी खुद मिटौणि छै?
देखिकी मैते मन ही मन, वू कैते धै लगौणि छै?

नौ त नि च् मेरु लिख्युं, कॉपी का कै भि पन्ना मा,
फिर वू कैकू नौ लिखिकी, रोज रोज मिटौणि छै?

कै देबता तै नि मनै वैन,जैजैकी दैवतों का थान मा,
कु रूठी होलु वैसे, वु कै कैते कण कै मनौणि छै?
 
देखिकी मैते कभिकभि, सब धणी बिसरे देंदी च् वू,
कु हर्ची होलु वैसे यन, वू मैं मा कैते खोजोणि छै।

मि भी वेकी माया मा, बस वेते ही देखदु रैन्दु छौं,
स्वीणों मा एकि वू, कण स्वाणा गीत मिसौणि छै।

क्य अजब कथा च् तू, या क्य गज़ब कथाकार छै,
हे माया! मैते क्या क्या, अर तू वैते क्या बिंगौणि छै?
                                 - अक्स

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2019

गढ़ कुमौं

कथा ऊँची, कथ्गा मोटी,
गढ़ कुमौं की बाड़ खड़ी। 
हिटा दाज्यू, हिटा बैणी,
काटा ये बाड़, लावा दंतुलि।            

जिया मेरी, हे ईजा मेरी, या भूमी मेरा पहाड़े की।
जब एक ही माँ च हमारी त,लड़ै बोला कै बाते की?
उत्तराखंड की बात करला,करला बात पहाड़े की।
छोड़िकि बथ ब्याळी की अब बथ लगौला आजे की। 

झुमैलो एकी, एकी झौड़,
एक ही थाल, एकी  डौंर,
हूड़कु एकी, मुरुली एकी,
बद्रीकेदार नंदा भी एकी। 
बौण एकी , एकी हिमाल,
एकी गंगा, जमुना एकी,
घुघुति एकी, एकी मोनाल
सुख भी एकी, दुःख भी एकी। 
ढोल दमौ बाजा एकी,
बालमिठै सिंगोरी एकी,
नथ गुलबंद बुलाक एकी 
उत्तरैणी मकरैनि एकी। 
होली हुल्यार बग्वाल एकी,
बाँझ बुराँस काफल एकी। 

पानी पलायन पहाड़ एकी,
रोजगारे की दौड़ भी एकी।   
पहाड़े राजधानी पहाड़ी नेति,
पीड़ा एकी जौड़ भी एकी 
पीड़ा एकी जौड़ भी एकी 
पीड़ा एकी जौड़ भी एकी 
पीड़ा एकी जौड़ भी एकी ...

  -  अतुल सती 'अक्स'  



बुधवार, 14 अगस्त 2019

लघु कथा: एक छोटी सी बात - अक्स

पति ऑफिस जाने ही वाला था कि तभी पत्नी का फोन बजने लगा।  फोन पत्नी की माँ का था। 
पत्नी ने फोन उठाया और बात करने लगी। 
" हाँ माँ !!! 
अरे बहुत काम पड़ा हुआ है, सांस लेने की फुर्सत ही नहीं है। हाँ हाँ ये बस अभी निकल ही रहे हैं ऑफिस के लिए। "

शाम हो चुकी है और पति वापस घर आ चुका है,
" हाँ माँ !!!
अरे बहुत काम पड़ा हुआ है, सांस लेने की फुर्सत ही नहीं है। हाँ हाँ ये बस अभी आ  ही रहे हैं ऑफिस से। चलो फिर किसी दिन फुर्सत से बात करेंगे। अच्छा बाय !"

माँ ने सोचा "बेचारी कितना परेशान है, हमेशा बेचारी का काम छूट ही जाता है, कितना ज्यादा काम है। कल इससे मैं काम के बारे जरूर बात करुँगी जब इसकी ननद की सास की देवरानी की बहु की माँ और उसकी जेठानी की बहन की बेटी की खटपट का चटपटा किस्सा सुनूँगी। "

note: "ये काल्पनिक कथा है इसका आपके जीवन के किसी भी व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है, और अगर कोई सम्बन्ध पाया भी जाता है तो ये मात्र एक संयोग होगा।        
     

गुरुवार, 1 अगस्त 2019

खाली हाथ

वैसे तो खाली हाथ ही रहता हूँ मैं अक्सर,
पर कभी कभी कुछ पथ्थर उठा लेता हूँ हाथों में,
मेरे पीछे अक्सर लगा रहता है भूत मेरा, मेरे भूत का,
वो टोकता है, रोकता रहता है मुझे,
जाने ही नहीं देता उस दुनिया में जिसे कहते हैं भविष्य हम,
उसे ही मारके भगाने को कुछ पथ्थर उठा लेता हूँ हाथों में,
वो भाग जाए, तो तुम खींचने लगते हो मेरी डोर पकड़ कर,
पर एक बात साफ़ करदूँ मैं ऐ ज़िन्दगी!
तुमने जो सिरा मेरा थामा है न हाथों में अपने,
उसका दूसरा कोई सिरा है ही नहीं।
अनगिनत सिरे हैं जो एक गिरह से बँधे हैं,
जैसे फिरकी हो कोई।
मैं, उसी गिरह में फँसा हुआ हूँ ज़िन्दगी!
आज़ादी चाहता हूँ इस बंधन से,
क्या कहा? 
आज़ादी तू दिलाएगी?
जानता हूँ मैं, तू उसे नहीं खोल पायेगी।
तू जब मौत बनकर आएगी,
खुदबखुद तू समझ जायेगी,
तेरे आते ही ये गिरह खुल जाएगी।
तब मैं खाली हाथ ही रहूँगा,
भूत का भूत, भविष्य का डर,
सब रह जायेंगे उन डोर में बंधे,
मुझे आज़ादी मिल जायेगी।
तू जब मौत बनकर आएगी,
खुदबखुद तू समझ जायेगी,
तेरे आते ही ये गिरह खुल जाएगी।
 -अक्स

शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

बलात्कार से बचाव के रास्ते

बिना कपड़ों के घर से बाहर न जाएँ: कुछ मर्द  इससे उत्तेजित हो जाते हैं।  

कपड़ों के साथ घर से बाहर न जाएँ:  कुछ मर्द  इससे भी उत्तेजित हो जाते हैं।

जल्दी शादी कर न करें :  कुछ मर्दों को शादीशुदा लड़कियां उत्तेजित करती हैं।    

देर में शादी न करें :  कुछ मर्दों को कुंवारी लड़कियां उत्तेजित करती हैं।

अकेली बाहर न जाएं: पुरुष अकेली स्त्री की तरफ अधिक आकर्षित होते हैं।

सहेली संग ले के न चलें :  कुछ मर्दों को लड़कियों की संख्या उत्तेजित करती हैं।  

किसी पुरुष मित्र के साथ बाहर न जायें: वो खुद ही आपका बलात्कार कर सकता है।

दिन के उजाले में न जाएं: दिन के उजाले में आपका पूरा शरीर नज़र आता है जो कि पुरुषों को उत्तेजित कर सकता है।

अँधेरे में न जाएँ :  अँधेरे में पुरुष हैवान हो जाते हैं। 

घर से बहार न निकलें: घर से बाहर तो खतरा है ही। कोई भी पुरुष आपको अपनी वासना का शिकार बना सकता है।

घर पर न रहे:  मर्द रिश्तेदार, अड़ोसी पड़ोसी बलात्कार कर सकते हैं 



जन्म ही न लें : --------शायद तब ही नारी बलात्कार से बच  पायेगी। पर तब नारी, नारी कहाँ  रह पायेगी ?

है कोई उपाय बचने का? क्योंकि गलती तो लड़कों से हो ही जाती है। संभालना तो लड़कियों को ही पड़ेगा।
    -अक्स


गुरुवार, 23 अगस्त 2018

लघु कथा: बहन का प्यार।


राजेश हमेशा की ही तरह हर वीकेंड पर घर का कुछ न कुछ(सारा) काम करता ही रहता था। उसकी पत्नी श्वेता भी उसका खूब साथ देती थी(मॉनिटरिंग)। एक ऐसे ही दिन श्वेता की भाभी का वीडियो काल आया और वो बातें करने लगी दोनों से। 

मजाक मजाक में भाभी ने पूछा "अरे! श्वेता तुम जवैं जी से काम करवा रही हो?"


इथा सुनते ही राजेश ने अपना दुखड़ा रोया कि उसे भाँडे भी मंजाने पड़ते हैं, झाड़ू पौछा भी करना पड़ता है बल।


ये सुनते ही श्वेता ने फ़ोन काट दिया और डांटते हुए बोली "तुम्हारु बरमंड कच्च करे की कचै देलु। तुम्हारा दिमाग खराब है जो ये सब भाभी को बता रहे हो? अब बौ(भाभी) मेरे बेचारे भैजी से भी घर का काम करवाएगी। वो बेचारा वीकेंड पर भी आराम नहीं कर पायेगा। तुम भी न...."

ऐसा होता है बहन का प्यार। वो हर पल अपने भाई की चिंता में होती है। रक्षाबंधन की शुभकामनाएं।


    -अक्स


बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

मने बथ:(मन की बात) केदार पीड़िता



ये जीवना आग मा,
क्या लिख्युं च भाग मा। 
मिन नी जाणी !!!
तुमुन नी जाणी !!! 


मुठ्ठी बोटी की राखी मिन।  
राँकू सी जिकुड़ी राखी मिन। 
आँसू मिन नी बगण देयी…
हिम्मत बांधी राखी मिन।   
साथ नी छौ हमरु भाग मा।  
मिन नी जाणी !!!
तुमुन नी जाणी !!!



अफुते,तुम बणे की राखी मिन। 
बच्चों ते कमी नी राखी मिन।     
पाड़ दुखो कू त टूटी हमपर,
पर अफु ते,अटूट राखी मिन।
माँ ही रैली बच्चों का भाग मा,
मिन नी जाणी !!!
तुमुन नी जाणी !!!





यू दिन कणके गुजारी मिन।  
मन ही मन मां रुएकि मिन।  
मजबूत बणी की रयुं सदनि, 
अफु ही अफु ते संभाली मिन। 
यन अनोणी हुएजाली केदार मा,  
मिन नी जाणी !!!
तुमुन नी जाणी !!!



(हिंदी अनुवाद )

(इस जीवन की आग में,
लिखा क्या है भाग्य में,
मैंने नहीं जाना,
तुमने नहीं जाना।  )   


(मुठ्ठी बंद रखी मैंने,
सुलगते अँगारों सा दिल रखा मैंने,
आँसू मैंने बहने नहीं दिए,
हिम्मत बाँध के रखी मैंने। 
साथ नहीं था हमारे भाग्य में,
मैंने नहीं जाना,
तुमने नहीं जाना।  )   
      

(अपनेआप को तुम बन लिया मैंने,
बच्चों को कोई कमी नहीं की मैंने,
पहाड़ दुखों का तो टूटा है हम पर,
पर खुद को अटूट रखा मैंने,
माँ ही रहेगी बच्चों के भाग्य में,      
मैंने नहीं जाना,
तुमने नहीं जाना। )    

 (ये दिन कैसे गुजारे मैंने,
मन ही मन में रोके मैंने,
मजबूत बन के रही सदा ही,
खुद ही खुद को सम्भाला मैंने,
ऐसी अनहोनी हो जाएगी केदार में,           
मैंने नहीं जाना,
तुमने नहीं जाना।  )   

           -अतुल'अक्स'