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गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

जख्म

तेरा दिया जख्म बिल्कुल इस मौसम सा ही है,
सर्द ही रहता है,हमेशा हरा हरा सा ही है।
खाली खाली सी है तेरे बिन मेरी ये जिन्दगी,
सभी कुछ खाली है,दिल पर भरा भरा सा ही है।
ये किस तरह के दरिया-ए-इश्क़ में हूँ मैं,
दिल डूबा हुआ है,जिस्म पर तरा तरा सा ही है।
उम्र तमाम तेरे साथ ही गुजारने की हसरत है,
एक ही अरमान है और वो भी धरा धरा सा ही है।
नब्ज़ टटोलकर मेरी वो कहने लगा अक्स,
मरा ही नहीं,अभी जिन्दा है, पर जरा जरा सा ही है।
                                       -अतुल सती अक्स

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