मेरे अक्स,
तू वो क्यों नहीं बन पाया,
जो मैं चाहता था,
जैसा मैं चाहता था।
तुझे कहा था कि,
तू ये करना,
ऐसा करना,
ये मत करना,
ऐसे नहीं, वैसे करना,
ये नहीं वो अच्छा है,
ये झूठा है वो सच्चा है,
इसकी कोई औकात नहीं ,
उसका बड़ा रुतबा है,
तू वो ही बनना।
क्या क्या कहा था,
क्या क्या चाहा था ,
तुझे मैं सूरज बनाना चाहता था,
इस अँधेरे से आसमान का।
लेकिन,
नाराज़ हूँ बहुत मैं तुझसे,
मेरे अक्स,
तू वो क्यों नहीं बन पाया,
जो मैं चाहता था,
जैसा मैं चाहता था।
पर,
सच कहूँ तो,
झूठा है मेरा ये गुस्सा तुझ पर,
मैं खुद ही वो न बन पाया,
जो मैं चाहता था,
जैसा मैं चाहता था।
फिर कैसे तुझ पर नाराज़ हो सकता हूँ मैं,
मैं जो खुद चाहता था होना,
वो न हो सका,
जैसा मैं बनना चाहता था,
जो बनना चाहता था,
जो करना चाहता था,
जो सही था मेरे लिए,
जो अच्छा था, सच्चा था,
वो मैं न बन सका।
नाराज़ हूँ बहुत मैं खुदसे,
मेरे अक्स,
मैं वो क्यों नहीं बन पाया,
जो मैं चाहता था,
जैसा मैं चाहता था।
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