अभी तक इस ब्लॉग को देखने वालों की संख्या: इनमे से एक आप हैं। धन्यवाद आपका।

यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

उत्तराखंडी ही दोषी हैं और उन्हें माफ़ी माँगनी ही चाहिए ।


सही ही तो कहा है कि मुज्जफ़रनगर कांड में जो हुआ उसके लिए उत्तराखंडी ही दोषी हैं और उन्हें माफ़ी माँगनी ही चाहिए। इसमें क्या गलत कहा है?
अब क्यों उबल रहे हो अब ये बातें सुन कर। उत्तराखंडी मुख्यमंत्री को उत्तराखंडियों ने ही तो चुना है।   
मैं तो कहता हूँ कि उत्तराखंड की इस दुर्दशा के लिए सिर्फ और सिर्फ उत्तराखंडी ही दोषी है और कोई नहीं। और आज भी वक़्त है हर उत्तराखंडी को सच में माफ़ी मांगनी चाहिए, माफ़ी मांगनी चाहिए उत्तराखंड से(केदार खंड और मानस खंड से), उन लोगों से जिन्होंने खटीमा, मसूरी, श्रीनगर और मुजफ्फरनगर में गोली खाई, जिनके बलात्कार हुए, उन शहीदों से माफ़ी मांगो। मांगो माफ़ी अपने पापों के लिए जिन लोगों ने कहा कि मेरी लाश पर उत्तराखंड बनेगा, उनको जिताया भी और मुख्यमंत्री भी बनाया। जिन्होंने उत्तराखंड लूटकर बाहर अपने महल बनाये उन्हें किसने चुना? क्यों चुना? 
वो लोग भी तो उत्तराखंडी ही हैं बल जिन्होंने खुद को क्रांति कारी बोलके खुद को सत्ता के लिए गिरवी रख दिया। वो क्रांतिकारी अपना दल तक एक नहीं रख पाए। और आजकल हुंकार भर रहे हैं उनको १६ साल लग गए नींद से जागने में बल।  उत्तराखंड बनके सुनिन्द स्वेगये थे वो।  
उत्तराखंडियों को इस बात के लिए भी माफ़ी माँगनी चाहिए जब उत्तराखंड बना और मैदानी इलाकों को इसमें जोड़ दिया गया और उत्तराखंडियोँ ने उसे क्यों स्वीकार कर लिया। आज का उत्तराखंड ये कैसा पहाड़ी राज्य है जहाँ विधान भवन में पहाड़ से ज्यादा गैर पहाडियों का प्रतिनिधित्व है। उत्तराखंडियों ने ही तो ये किया ये अनर्थ, मौन सहमति किसकी थी? क्या इसके लिए माफ़ी नहीं माँगनी चाहिए?
    
उत्तराखंड से ढ़ाई लाख परिवार बल पलायन कर गए वो भी तो उत्तराखण्डी ही ठैरे।अब जिन्होंने पलायन किया बल वो भी उत्तराखंडी ठैरे और जिसकी वजह से पलायन हुआ वो भी उत्तराखंडी ठैरे। तो बल अब कौन माफ़ी मांगेगा और किस किस से?              

बल कोदा झंगोरा खाएँगे उत्तराखंड बनाएँगे। सोलह साल बाद कोदा झंगोरा उगाने लायक भी नहीं रहा उत्तराखंड। डैम डैम से डामिली ये पहाड़ो बरमंड। आज प्रधानमन्त्री बोलते हैं बल उत्तराखंड गढ्ढे में है उसे निकालो बल, पर इसे खाड़ उन्द केन डाली? कोई मेरे को भी बथाओ बल, इसके लिए उत्तराखंडी क्यों न मांगे बल माफ़ी? पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ी ही नहीं बन पायी अभी तक बल कौन जिम्मॆदार है इसके लिए? देबता भी दोष हो हो कर थक गए पर उनको न नचाने का और दोष लगाने के लिए क्यों नहीं माफ़ी मांगनी है बल?
हमने खुद ही तो बल धकिया धकिया कर इस उत्तराखंड को खंड खंड कर के खाड़ उंद डाला। पलायन पर रोने वालों, भेर देस वालों ते कैन अपरी जमीन बेचीं? किले बेची? जेन बेची वो भी तो उत्तराखंडी ही ठैरे बल। अपरी पितरों की कूड़ी, पुंगड़ी बेचने वालों माफ़ी मांगो!    
पर माफ़ी कैसे मांगे और किससे मांगे बल अब। कौन बताएगा की कौन जिम्मेदार है? कौन बचाएगा अब बल? अब तो बल मवासी घाम लगी ही जाएगी क्योंकि उत्तराखंड में दो किस्म की प्रजाति रहती हैं( कुमाउँनी गढ़वाली नहीं रे !, सवर्ण दलित नहीं रे ! जजमान बामण भी नहीं रे ! गंगाड़ी सारोला भी नई बल! छि भै रावत नेगी भी नि रे !) बल वो प्रजाति हैं गंगाधर और शक्तिमान।
सारे नेता, सारी पार्टियाँ, सारे वोटर, NRU(नॉन रेजिडेंट ऑफ़ उत्तराखंड) और उत्तराखंडी (बेचारे जो पलायन नहीं कर पाए) सब या तो गंगाधर हैं, या फिर शक्तिमान।
और ये एक ओपन सीक्रेट है बल गंगाधर ही शक्तिमान ठैरा। और ये बात अगर तुमको नहीं पता है तो माफ़ी मांगो!!! मांगो माफ़ी !!!              
                                               - अतुल सती 'अक्स'

कोई टिप्पणी नहीं: