भैजी भुल्ला की बथ: (हिन्दू धरम पर अटैक )
"भैजी!!! अरे ओ भैजी!!! घोर अनर्थ हो गया बल। हमारा हिन्दू धरम पर अटैक हो गया। खत्म होने वाला है हिन्दू धरम। अब क्या होगा भेजी? मेरी जिकुड़ी में तो कबलाट होने लगा है।(जी घबरा रहा है)""अरे भुल्ला!!! तू भी ना क्या हो गया हिन्दू धरम को? आज तक तो खत्म नहीं हुआ बल अब कैसे खत्म होने लग गया? मैं तो अब शास्त्री भी बन गया था वेदपाठी से, मेरे ही दाँ(वक़्त) ऐसा होना था क्या? अब मैं पैसे कैसे कमाऊँगा यार?
बता तो सही हुआ क्या है? किसने किया?"
"अरे भैजी मैंने सुना बल की कोई खान है जो बहुत अमीर है, और उसने किसी ईरानी से मिल कर हम पर हमला कर दिया है। मुग़ल जो नि कर पाये जो अँगरेज़ नि कर पाये उसने कर दिया बल। टीवी पर देखा मैंने सच्ची। बड़े बड़े पंडित लोग बोल रहे थे की उसने हमारे धरम पर हमला किया है। महादेव भी उससे भाग रहे थे। उसने बोला बल बाबा लोग पाखंडी हैं। अब क्या होगा भैजी??? उसने बल पी भी राखी है बल पी के है वो।"
"अरे लाटा!!! वो तो पिक्चर है रे!!! आमिर खान की और राजू हिरानी की। तूने भी सुध्धि-मुध्धि(बेवजह) डरा दिया था। अरे उसने गलत क्या बोला बल? बाबा लोग तब से हमें बेवकूफ ही बनाते हैं। और हम गधे उन्हें भगवान बना देते हैं। आर शिवजी वाली जो बात है वो तो एक आदमी था जिसने वेशभूषा बना राखी थी शिव जी की।
और एक बात बता सड़क पर, चौराहे पर कितने लोग मिलते हैं शिव,गणेश, काली, हनुमान बन कर भीख मांगते हैं तब कख हर्ची(कहाँ खो) जाता है हिन्दू धरम के ठेकेदारों का प्रेम? तब तो सब उन्हें पैसे देकर या डरा धमका कर भगा देते हैं। तब नी होता बल अपमान? अरे वो जो समझाना चाह रहा था वो तो समझ नहीं रहा तू और इन पोंगा पंडितों की बातों में आ रहा है। तू भी न निरपट्ट लाटा है। "
"अरे लोग बोल रहे हैं की मज़ारों की चादर नहीं दिखाई अन्य धर्मो को नहीं दिखाया ठीक है मैं मानता हूँ, पर जो दिखाया उसमे गलत क्या है? सच्च में खुद को आईने में देखो तो बल। गलत तो कुछ भी नहीं था पर काम जरूर था।"
"अरे भैजी!!! ये तो वही बात है उसके कपडे मेरे कपडे से ज्यादा सफ़ेद कैसे???,मेरे को मारा तो उसको भी मारो न।
भाजपा और कांग्रेस वाली बात हो गयी। मेरा ही भ्रस्टाचार क्यों दिखाया उसका क्यों नहीं? "
इस ब्लॉग में शामिल हैं मेरे यानी कि अतुल सती अक्स द्वारा रचित कवितायेँ, कहानियाँ, संस्मरण, विचार, चर्चा इत्यादि। जो भी कुछ मैं महसूस करता हूँ विभिन्न घटनाओं द्वारा, जो भी अनुभूती हैं उन्हें उकेरने का प्रयास करता हूँ। उत्तराखंड से होने की वजह से उत्तराखंडी भाषा खास तौर पर गढ़वाली भाषा का भी प्रयोग करता हूँ अपने इस ब्लॉग में। आप भी आन्नद लीजिये अक्स की बातें... का।
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शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016
भैजी भुल्ला की बथ: (हिन्दू धरम पर अटैक )
गुरुवार, 29 दिसंबर 2016
आंदोलन
आंदोलन वो है जो सबसे पहले मन में चले,
और उस विचार को सबसे पहले,
मन को आंदोलित करना चाहिए।
फिर उसे जज्बात से लबरेज़ हो कर,
भाषण और जागरण के रूप में,
एक पूर्ण रूप आंदोलन में ढलना चाहिए।
जो विचार केवल दिमाग में आये,
जो विचार केवल दिमाग में आये,
और दिल और मन में ढल पाए,
बाण वही सही जो सीधा दिल में उतर जाये,
अगर विचार बाण आपके ही मन को न भेद पाए,
तो उस बाण का धनुष पर संधान नहीं करना चाहिए।
और अगर मन में कोई आंदोलन चल रहा है,
कोई अथक अनवरत जागरण चल रहा है,
कोई बाण है जो ह्रदय में चुभता जा रहा है,
तो उस बाण का तरकश में रहना अपमान है,
अपने हुनर के धनु पर उसका संधान करना चाहिए,
और भेद जाए सारे लक्ष्य एक ही बार में,
कुछ इस तरह से उसे लक्ष्य पर चला देना चाइये,
ऐसे विचारों को अटल अतुल आंदोलन में ढलना चाहिए।
क्योंकि,
आंदोलन वो है जो सबसे पहले मन में चले,
क्योंकि,
आंदोलन वो है जो सबसे पहले मन में चले,
और उस विचार को सबसे पहले,
मन को आंदोलित करना चाहिए।
फिर उसे जज्बात से लबरेज़ हो कर,
भाषण और जागरण के रूप में,
एक पूर्ण रूप आंदोलन में ढलना चाहिए। - अतुल सती 'अक्स'
उत्तराखंडी ही दोषी हैं और उन्हें माफ़ी माँगनी ही चाहिए ।
सही ही तो कहा है कि मुज्जफ़रनगर कांड में जो हुआ उसके लिए उत्तराखंडी ही दोषी हैं और उन्हें माफ़ी माँगनी ही चाहिए। इसमें क्या गलत कहा है?
अब क्यों उबल रहे हो अब ये बातें सुन कर। उत्तराखंडी मुख्यमंत्री को उत्तराखंडियों ने ही तो चुना है।
मैं तो कहता हूँ कि उत्तराखंड की इस दुर्दशा के लिए सिर्फ और सिर्फ उत्तराखंडी ही दोषी है और कोई नहीं। और आज भी वक़्त है हर उत्तराखंडी को सच में माफ़ी मांगनी चाहिए, माफ़ी मांगनी चाहिए उत्तराखंड से(केदार खंड और मानस खंड से), उन लोगों से जिन्होंने खटीमा, मसूरी, श्रीनगर और मुजफ्फरनगर में गोली खाई, जिनके बलात्कार हुए, उन शहीदों से माफ़ी मांगो। मांगो माफ़ी अपने पापों के लिए जिन लोगों ने कहा कि मेरी लाश पर उत्तराखंड बनेगा, उनको जिताया भी और मुख्यमंत्री भी बनाया। जिन्होंने उत्तराखंड लूटकर बाहर अपने महल बनाये उन्हें किसने चुना? क्यों चुना?
वो लोग भी तो उत्तराखंडी ही हैं बल जिन्होंने खुद को क्रांति कारी बोलके खुद को सत्ता के लिए गिरवी रख दिया। वो क्रांतिकारी अपना दल तक एक नहीं रख पाए। और आजकल हुंकार भर रहे हैं उनको १६ साल लग गए नींद से जागने में बल। उत्तराखंड बनके सुनिन्द स्वेगये थे वो।
उत्तराखंडियों को इस बात के लिए भी माफ़ी माँगनी चाहिए जब उत्तराखंड बना और मैदानी इलाकों को इसमें जोड़ दिया गया और उत्तराखंडियोँ ने उसे क्यों स्वीकार कर लिया। आज का उत्तराखंड ये कैसा पहाड़ी राज्य है जहाँ विधान भवन में पहाड़ से ज्यादा गैर पहाडियों का प्रतिनिधित्व है। उत्तराखंडियों ने ही तो ये किया ये अनर्थ, मौन सहमति किसकी थी? क्या इसके लिए माफ़ी नहीं माँगनी चाहिए?
उत्तराखंड से ढ़ाई लाख परिवार बल पलायन कर गए वो भी तो उत्तराखण्डी ही ठैरे।अब जिन्होंने पलायन किया बल वो भी उत्तराखंडी ठैरे और जिसकी वजह से पलायन हुआ वो भी उत्तराखंडी ठैरे। तो बल अब कौन माफ़ी मांगेगा और किस किस से?
बल कोदा झंगोरा खाएँगे उत्तराखंड बनाएँगे। सोलह साल बाद कोदा झंगोरा उगाने लायक भी नहीं रहा उत्तराखंड। डैम डैम से डामिली ये पहाड़ो बरमंड। आज प्रधानमन्त्री बोलते हैं बल उत्तराखंड गढ्ढे में है उसे निकालो बल, पर इसे खाड़ उन्द केन डाली? कोई मेरे को भी बथाओ बल, इसके लिए उत्तराखंडी क्यों न मांगे बल माफ़ी? पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ी ही नहीं बन पायी अभी तक बल कौन जिम्मॆदार है इसके लिए? देबता भी दोष हो हो कर थक गए पर उनको न नचाने का और दोष लगाने के लिए क्यों नहीं माफ़ी मांगनी है बल?
हमने खुद ही तो बल धकिया धकिया कर इस उत्तराखंड को खंड खंड कर के खाड़ उंद डाला। पलायन पर रोने वालों, भेर देस वालों ते कैन अपरी जमीन बेचीं? किले बेची? जेन बेची वो भी तो उत्तराखंडी ही ठैरे बल। अपरी पितरों की कूड़ी, पुंगड़ी बेचने वालों माफ़ी मांगो!
पर माफ़ी कैसे मांगे और किससे मांगे बल अब। कौन बताएगा की कौन जिम्मेदार है? कौन बचाएगा अब बल? अब तो बल मवासी घाम लगी ही जाएगी क्योंकि उत्तराखंड में दो किस्म की प्रजाति रहती हैं( कुमाउँनी गढ़वाली नहीं रे !, सवर्ण दलित नहीं रे ! जजमान बामण भी नहीं रे ! गंगाड़ी सारोला भी नई बल! छि भै रावत नेगी भी नि रे !) बल वो प्रजाति हैं गंगाधर और शक्तिमान।
सारे नेता, सारी पार्टियाँ, सारे वोटर, NRU(नॉन रेजिडेंट ऑफ़ उत्तराखंड) और उत्तराखंडी (बेचारे जो पलायन नहीं कर पाए) सब या तो गंगाधर हैं, या फिर शक्तिमान।
और ये एक ओपन सीक्रेट है बल गंगाधर ही शक्तिमान ठैरा। और ये बात अगर तुमको नहीं पता है तो माफ़ी मांगो!!! मांगो माफ़ी !!!
- अतुल सती 'अक्स'
मंगलवार, 27 दिसंबर 2016
सपने देखो और पूरा करो
पता मैं क्या सोचता हूँ, अगर मैं कोई काम नहीं कर पाया न इस दुनिया में अपने हिसाब से, मैं कभी नहीं चाहूँगा की मेरा बेटा उसे मेरे लिए पूरा करे, वो भी मेरे हिसाब से।ना ही मैं कोई जी तोड़ मेहनत करूँगा उसे उसकी मर्जी के खिलाफ(या उसके दिमाग में अपनी सोच डाल कर) उसे वो बनाने के लिए जो मैं चाहता हूँ। उसकी अपनी ज़िन्दगी है मेरी अपनी।मेरा बेटा "आरुष" जो करना चाहेगा अपने हिसाब से, जो भी वो बनना चाहेगा मैं उसमें ही खुश हूँ।आजकल आप कोई भी रियलिटी शो देखें, (मैं अपने माबाप का सपना पूरा करना चाहता हूँ, मेरे पाप ये चाहते थे... वो ये नहीं बन पाए.... मैं चाहता हूँ मेरा बीटा/बेटी वो बने... ये बने.... मोहल्ले में नाम होगा।) मतलब क्यों? क्यों कोई किसी और का सपना पूरा करे क्यों? तभी तो अधिकतर लोग आज कल अपने छेत्र में अच्छे नहीं हैं। मन मार कर सब काम कर रहे हैं।जब मेरे सपने हैं तो उनपर अधिकार भी मेरा है और उसे पूरा करने का फ़र्ज़ भी मेरा ही है। मेरी संतान का सपना उसका खुद होगा उसे इस काबिल बनाओ कि वो अपने सपने पूरे कर सके उससे पहले वो खुद सपने देख सके, उसे पाल सके जी सके।पहले ही बच्चों पर स्कूल का बोझ होता है, उस पर संस्कार, संस्कृति, मोहल्ले वाले, उसके बच्चे इसके बच्चे, नाते दार रिश्तेदार और फिर ऊपर से माबाप के अधूरे ख्वाब।(इसे दंगल से जोड़ कर न देखें, क्योंकि हमारे जीवन में अधिकतर लोग अपने माँबाप का ही सपना पूरा करने में मर खप जाते हैं,और फिर हम जो चाहते हैं वो नहीं कर पाते.... और तब हम अपनी संतानों से अपने सपने पूरा करवाते हैं और फिर वो अपनी... )इस चक्र इस कुचक्र को तोडना होगा, किसी को तो, कभी तो इसे तोडना होगा। मैं तोड़ रहा हूँ, क्या आप भी तोड़ेंगे? अपने बच्चों के लिए मैंने सुना है आप लोग कुछ भी कर जायेंगे सच्ची !!!! तो उन्हें उनके सपने पूरे करने दो। अपने सपने खुद पूरे करो क्योंकि वो आपके हैं। सपने देखो और पूरा करो।मैं किस्मत वाला हूँ जो मुझे मेरे माँ बाप ने अपना कोई सपना नहीं दिया, और मुझे ख्वाब देखना सिखाया, उसे पूरा करना सिखाया और मेरे सपने को पूरा करने को मदद की। मेरे जैसे बहुत से बच्चे नहीं जिनके माँबाप समझदार हैं। लेकिन क्या हम समझदार हैं? सोचिये। आप क्या क्या नहीं थोप रहे हैं अपने बच्चों पर।उनको ख्वाब देखने दो पूरा हो न हो पर हौसला दो उसको पूरा करने की कोशिश करने के लिए उससे भी पहले उन्हें ख्वाब देखना सिखाओ!!! उनका ख्वाब उनका अपना।- अतुल सती 'अक्स'http://atulsati.blogspot.com/2016/12/blog-post_76.html
भैजी भुल्ला की बथ:(मोदी अर उत्तराखंड)
भैजी भुल्ला की बथ:(मोदी अर उत्तराखंड)
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"भैजी भैजी !!! मी भि आज गयुं छौं मोदी जी ते सुणनो, तुम किले नि आये बल?" भुल्ला अपनी साँसों को संभालते हुए बोल रहा था।
भैजी : क्या बोला बल मोदी जी ने? चाहिए की नहीं चाहिए? होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए?
भैजी: " अरे वाह !!! यु त भिजाम सुंदर बथ च। पर सिरोबगड़ जन रगड़ भगड़ ते कणके रोकला? पाणी बल पहाड़ का डाम पर डाम बणेकी रुका हुआ ही है, जु यु डामन डमयान छन हम जु यु टाइमबम च हमारा मुण्ड मा वेका बारा मा भी कुछ बोली क्या कैन मोदी जी थें?
जवान जु अगर रूक्यां छन कुई पहाड़ पर, उनको तो बल "डेनिस" "भांग" और "गाँजा" उगा कर तो सरकार काम ला ही रहे हैं। पहाड़ का पानी और पहाड़ का जवानी डेनिस को पीने के काम आ रही है, ये भी बताया किसी ने उन्हें बल?
गड्डा खोदने को बिहारी हैं, हम पहाड़ी कहाँ काम करते हैं? बोझा ढोने को बल डुटियाल हैं यहाँ, पर्यटन के लिए बाहर के भू माफिया हैं, दूकान-बिज़नस के लिए देसी हैं, उत्तराखंड के विकास के लिए उत्तराखंडी कहाँ से लाएंगे? वो तो बल दिल्ली सजा रहे हैं, मुम्बई सजा रहे हैं, देस सजा रहे हैं विदेश सजा रहे हैं। प्रवासी हैं, NRU (नॉन रेजिडेंट ऑफ़ उत्तराखंड) हैं। उत्तराखंड के विकास के लिए उत्तराखंडी कहाँ से लाएंगे? ये भी बताया बल किसी ने मोदी जी को।
बल ५-५ सांसद भेजे उन्हें उनमे से किसी ने तो बोला होगा? उत्तराखंड में उत्तराखंडी कहाँ हैं बल? जो हैं वो पहाड़ी कहाँ हैं बल, और जो पहाड़ी भी हैं तो वो भी त बल देस जाने की फ़िराक में हैं बल "
भुल्ला: बथ तो सही बोली बल भैजी तुमुन। यख उत्तराखंड मा उत्तराखंडी कहाँ से लाएंगे? अपरा जगदम्बा चमोला जीन भालू ही बोली छौ " जु छन वु उंद गया छन, यख सुख्यां मुंगरौट रयां छन"
दिव्या रावत जन काम करना पड़ेगा, शेखर पाठक जैसा असकोट-आराकोट ( पहाड़ ) करना पड़ेगा क्या? कर्नल कोठियाल जैसा कुछ करना पड़ेगा क्या?
माधोसिंह भंडारी बन के खुद ही कूल खोदनी पड़ेगी क्या? मतलब मैं भङ्गलु नहीं उगाऊँ? डेनिस न पिलाऊँ?
वो रावत भैजी नाराज़ हो जायेंगे, अर अगर मोदी भैजी की बात नहीं मानूँ तो मोदी नाराज़ हो जायेंगे।
बोला भै !!!तब क्या कारला भैजी?
"अरे भुल्ला हम लोग न ग्यों छन, अर राजनीतिक पार्टी चक्का। पिसना त हमको ही ठैरा बल।"
https://atulsati.blogspot.in/2016/12/blog-post_27.html
सोमवार, 26 दिसंबर 2016
पुराण- कुरान-अक्स की बातें
मुझे भगवान् का पुराण स्वीकार है,
मुझे अल्लाह का कुरान स्वीकार है।
ढोंगी पोंगा पंडित का पुराण पुराण नहीं,
अढ़ियल दढ़ियल मुल्ले का कुरान कुरान नहीं।
जो कल हुआ, वो कल था, वो कहीं से भी आज नहीं,
ईश्वर मेरा तुम्हारे किसी भी कर्मकांड का मोहताज़ नहीं,
अल्लाह मेरा झूठी अज़ानों के हल्ले का मोहताज़ नहीं।
तुम मन से उसकी पूजा करो, इबादत करो,
हर दफ़ा उठ कर गर सो जाओ
हर दफ़ा गर सो कर उठ जाओ,
तो उसका धन्यवाद करो,
उसके तुम शुक्रगुज़ार रहो,
याद रखो इस अक्स की बातें,
तुम उसके मोहताज़ हो, वो तुम्हारा मोहताज़ नहीं।
जो कल हुआ, वो कल था, वो कहीं से भी आज नहीं,
ईश्वर मेरा तुम्हारे किसी भी कर्मकांड का मोहताज़ नहीं,
अल्लाह मेरा झूठी अज़ानों के हल्ले का मोहताज़ नहीं।
- अतुल सती 'अक्स'- Atul Sati 'aks'
मंगलवार, 20 दिसंबर 2016
अक्स कु एक सवाल
जै ते तुम घौर बोल्दा छन,वू घौर कख च?
जथा तुम बोलणा छन, उथा शोर कख च?
वू त भुखू छौ चार दिनों कू, वू चोर कख च?
मिठै चोरी करी जेन ,वू मिठै मिलावटी छै,
खूनों रिश्ता छैं त च पर अब, वू जोर कख च?
कख हर्चीगिन भैजि की डाँट, भुल्ले की जिद्द,
तुमुन त अपरा ही भै की जमीन छीनी ल्याई,
ज्यूँन अपरा बच्चों ते सब धणी त्यागी 'अक्स',
जै मकाना का हिस्सा होन्दा, वू घोर कख च?
ऊं बुए बुबा ते त्यागण वालु, कमजोर कख च?
-अतुल सती 'अक्स'
सोमवार, 19 दिसंबर 2016
भैजी भुल्ला की बथ:(हनीफ़ रावत अर उत्तराखंड)
भैजी भुल्ला की बथ:(हनीफ़ रावत अर उत्तराखंड)
गढ़वाली कुमाउँनी जौनसारी भाषा संस्थान तो बनाया नहीं उर्दू अकादमी बना दी बल नकली राजधानी देहरादून में।
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भैजी!!! तुमुन भी सुणी बल हनीफ़ रावत भैजीन हर जुम्मा मा डेड़ घंटो अवकाश घोषित कर दिया है। कहीं अपना उत्तराखंड उत्तराखंडिस्तान तो नहीं बन रहा बल? कभी छठ की छुट्टी त अब जुम्मे की।
हम पर भी तो वो देबता ढुकाया था उसको नचाने की छुट्टी देंगे बल जेई साहब??? अच्छा हर मंगल अर शनिबार ते हमें पूछ भी करानी होती है पुछेर से, छुट्टी देंगे बल क्या बड़े साहब? देबता तूशता ही नहीं है।
भैजी: अरे भुल्ला तू भी न लाटा है, हम भोटर थोड़े न हैं जो हमें छुट्टी मिलेगी बल। अच्छा एक जजमान को भोट कौन बामण देगा? ऊपर से वो कुमैं है गढ़वाली किले देंगे भोट? हम सरोले भी हैं रे हम गंगाड़ी को भी भोट नहीं देते और त और अपर ही गौं के मल्ले खोले वालों को भी हम भोट नहीं देते। अर हाँ बोड़ीन वू नरसिंग ढुकाया था न हम पर जिस पर माँ ने अपना भैरव पुकारा था तो भोट त हम अपरा ही भैजी को भी नहीं दे पाएंगे।
भुल्ला: पर भैजी देबता को तो तुषाना ही है, हमने जो लगोठीया लाया है उसका क्या? छुट्टी नि मिलेगी त कण के नचै होगी? दोष लगेगा देबता का?
भैजी: अरे देबता को टक्कर देने के लिए सैद (पीर बाबा) भी त आजकल नचा रहे हैं, वो भी तो दोष लग रै हैं।
सब्बिया सब्बि दोष छन हुयां ये पहाड़ पर। जनि कण हँकार लगयूं च कण उत्तणदंड हयूं च?
भुल्ला: त भैजी ये दफा चुनाव मा बल बिगास की बथ नहीं होगी बल? स्थायी राजधानी, विकास, केदार आपदा का गबन, भू-शराब-शिक्षा-खनन माफिया राज, पलायन, बेरोजगारी की बात नहीं होगी बल?
भँगलू ज्यादा ही खै ली ये मास्तन!!!
गढ़वाली कुमाउँनी जौनसारी भाषा संस्थान तो बनाया नहीं उर्दू अकादमी बना दी बल नकली राजधानी देहरादून में।
इस्कूल त बनाया नहीं, डोबरचान्ठी पल बने नहीं टेहरी में मदरसा बना दिया बल।
देबभुमी भी बल अस्साम अर बंगाल जन हुएजालु? मिन सुणी बल उत्तराखंड तीसरा नंबर पर है मुस्लिम जनसँख्या को सबसे तेजी से बढाने में।
भैजी: सही सुनी भुल्ला तिन। तीसरू च उत्तराखंड भारत मा मुसलमानों की बढ़ती आबादी ते। पर हम यखुली यखुली क्या कर सकते हैं? जो कर सकते हैं वो तो बल NRU बने हुए ठैरे बल !!! इन्टरनेट पर ही ता बल हो हल्ला करेंगे। आंदोलन भी बल फेसबुक पर चलाएंगे। मजबूर जो ठैरे बल।
साला हम उत्तराखंडी(पहाड़ी) मजबूर बड़े हैं यार जो NRU हैं वो बल मजबूर हैं फ्लैट के कुमचरे के लोन के लिए नाच रहे हैं और हम यहाँ हंकार-जनकार के लिए नाच रहे हैं। कोई बल दारु पी कर नाच रहा है त कोई बल पहाड़ छोड़ कर प्लैन (पलाइन) के लिए नाच रहा है। यु कण देबता ढुकाया है इन नेताओं ने बल सब्बिया सब्बि झम्म जकड़ियाँ छन अर सब्बियाँ सब्बि नाचना छन।
और उसके बाद दोनों भैजी और भुल्ला ने पव्वा गटकाया और सो गए, कुछ देर पैले वो जिस पुछेर से मिलने गए थे वो भी बल देहरादून शिफ्ट हो गया।
गुरुवार, 15 दिसंबर 2016
जख्म
तेरा दिया जख्म बिल्कुल इस मौसम सा ही है,
सर्द ही रहता है,हमेशा हरा हरा सा ही है।
खाली खाली सी है तेरे बिन मेरी ये जिन्दगी,
सभी कुछ खाली है,दिल पर भरा भरा सा ही है।
ये किस तरह के दरिया-ए-इश्क़ में हूँ मैं,
दिल डूबा हुआ है,जिस्म पर तरा तरा सा ही है।
उम्र तमाम तेरे साथ ही गुजारने की हसरत है,
एक ही अरमान है और वो भी धरा धरा सा ही है।
नब्ज़ टटोलकर मेरी वो कहने लगा अक्स,
मरा ही नहीं,अभी जिन्दा है, पर जरा जरा सा ही है।
बुधवार, 14 दिसंबर 2016
मैं और मेरा मित्र
सोमवार, 12 दिसंबर 2016
मैं और मेरा अक्स
मेरे अक्स,
तू वो क्यों नहीं बन पाया,
जो मैं चाहता था,
जैसा मैं चाहता था।
तुझे कहा था कि,
तू ये करना,
ऐसा करना,
ये मत करना,
ऐसे नहीं, वैसे करना,
ये नहीं वो अच्छा है,
ये झूठा है वो सच्चा है,
इसकी कोई औकात नहीं ,
उसका बड़ा रुतबा है,
तू वो ही बनना।
क्या क्या कहा था,
क्या क्या चाहा था ,
तुझे मैं सूरज बनाना चाहता था,
इस अँधेरे से आसमान का।
लेकिन,
नाराज़ हूँ बहुत मैं तुझसे,
मेरे अक्स,
तू वो क्यों नहीं बन पाया,
जो मैं चाहता था,
जैसा मैं चाहता था।
पर,
सच कहूँ तो,
झूठा है मेरा ये गुस्सा तुझ पर,
मैं खुद ही वो न बन पाया,
जो मैं चाहता था,
जैसा मैं चाहता था।
फिर कैसे तुझ पर नाराज़ हो सकता हूँ मैं,
मैं जो खुद चाहता था होना,
वो न हो सका,
जैसा मैं बनना चाहता था,
जो बनना चाहता था,
जो करना चाहता था,
जो सही था मेरे लिए,
जो अच्छा था, सच्चा था,
वो मैं न बन सका।
नाराज़ हूँ बहुत मैं खुदसे,
मेरे अक्स,
मैं वो क्यों नहीं बन पाया,
जो मैं चाहता था,
जैसा मैं चाहता था।
इश्क
इश्क में,
सजा भी है,
और,
इसका इक
मजा भी है।
सुरूर है,
गुरूर है
इश्क़ में,
तेरे,
'अक्स',
जरूर है,
जरूर है।
निगाह में,
तेरी हैं,
सनम,
बला बला की,
शोखियां।
देखती हैं,
जब मुझे,
गिराती हैं,
ये,
बिजलियाँ।
के बस,
तुझे ही
देख के,
मेरी,
सुबह औ,
शाम हो।
तेरी ही,
मस्त,
निगाह से,
मेरे,
इश्क का,
हर जाम हो।
- अतुल सती 'अक्स'
सजा भी है,
और,
इसका इक
मजा भी है।
सुरूर है,
गुरूर है
इश्क़ में,
तेरे,
'अक्स',
जरूर है,
जरूर है।
निगाह में,
तेरी हैं,
सनम,
बला बला की,
शोखियां।
देखती हैं,
जब मुझे,
गिराती हैं,
ये,
बिजलियाँ।
के बस,
तुझे ही
देख के,
मेरी,
सुबह औ,
शाम हो।
तेरी ही,
मस्त,
निगाह से,
मेरे,
इश्क का,
हर जाम हो।
- अतुल सती 'अक्स'
गुरुवार, 1 दिसंबर 2016
परिवार को बचाइये
अरे !!! हम शरमाते हैं,
पर,
जनसँख्या खूब बढ़ाते हैं।
अरे !!! हम लिहाज करते हैं,
और,
खुद को लाइलाज करते हैं।
अरे !!! महंगाई ने कमर तोड़ दी,
और,
छठे बच्चे के वक़्त, उसने दुनिया छोड़ दी।
अरे !!! ये शिक्षा हमारी संस्कृति नहीं,
तो,
खुजराहो, कामसूत्र क्या हमारी कृति नहीं?
अरे !!! तो क्या करूँ?
पर,
जनसँख्या खूब बढ़ाते हैं।
अरे !!! हम लिहाज करते हैं,
और,
खुद को लाइलाज करते हैं।
अरे !!! महंगाई ने कमर तोड़ दी,
और,
छठे बच्चे के वक़्त, उसने दुनिया छोड़ दी।
अरे !!! ये शिक्षा हमारी संस्कृति नहीं,
तो,
खुजराहो, कामसूत्र क्या हमारी कृति नहीं?
अरे !!! तो क्या करूँ?
कैसे करूँ?
कुछ तो सुझाईये !!!
......तो आप,
मत शर्माइये,
मत शर्माइये,
कहते जाइये,
सुनते जाइये।
एड्स, यौन रोग,
एड्स, यौन रोग,
असुरक्षा से सबको बचाइये।
बड़े, छोटे,
बड़े, छोटे,
सब को बात खुल कर बताइये।
कंडोम लगाइये,
कंडोम लगाइये,
परिवार को बचाइये।
- अतुल सती 'अक्स'
- अतुल सती 'अक्स'
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