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सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

कण अजीब बात च ?

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  कण अजीब  बात च ?
नापी की,अफ्फु ते पूरु,
जब भी एक चदरू खरीदी की लोंदु छौं,
हर  दफा अफरा खुटु ते,
एक बिलिस्त भेर  ही पांदु छौं। 
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पाई  पाई  ते तरसी की,  
जब भी, कै खजणू ते पांदु छौं। 
बस एक पाई कखिन और मिल जांदी, 
ये ही जुगाड़ मा लग्युं रेंदु छौं। 
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अग्णे  भगणे की दौड़ मा,
सब्युं ते पिछणे छोड़दु जांदू छौं,  
यन त दगड्या भिजां छन यख,
पर दगडू कम कू ही यख पांदु छौं। 
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सेरा सुख खरीद ल्यूं सोच्दु छौं,  
पर हर दफा अपरू खीसु फट्यूं पांदु छौं,  
सांस, त यन रोज ही लेन्दू छौं पर,
कुजणी, जीणू ते किले तरस जान्दुं छौं?
कण अजीब  बात च ?
नापी की,अफ्फु ते पूरु,
जब भी एक चदरू खरीदी की लोंदु छौं,
हर  दफा अफरा खुटु ते,
                               एक बिलिस्त भेर  ही पांदु छौं।                            
                                            -अतुल सती 'अक्स '

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