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शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

वो कल ...

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ना  जाने  कल  तूने  क्या  कहा ?
लबों  पर  जुम्बिश  हुई  भी  नहीं ,
और  जो  सुना  वो  थमता  भी  नहीं ..

ना  जाने  कल  तूने  हथेली  पर  क्या  लिखा ?
कुछ  दिखता  भी  नहीं ,
और  जो  लिखा  वो  मिटता  भी  नहीं ...

ना जाने किस तरह की करीबी का एहसास है?
तू करीब  आता भी  नहीं ,
और  मुझसे  दूर जाता भी  नहीं ..

ना जाने किस तरह का ये यार-ए-दीदार है?
'अक्स'  जाहिर  होता  भी  नहीं ,
और सही  से मुझसे छुपता  भी  नहीं ...

ना  जाने  कल  तूने  क्या  कहा ?
लबों  पर  जुम्बिश  हुई  भी  नहीं ,
और  जो  सुना  वो  थमता  भी  नहीं ..
                                                    -अतुल सती 'अक्स'

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