इस देश में क्या कभी किसी कृष्ण का जन्म हुआ था,
या ये केवल मिथ्या है।
अगर हुआ भी था जन्म तो,
क्या उनका प्रेम,राधा का समर्पण,
बस एक कोरी मिथ्या है।
खुजराहो भी एक मिथ्या है,
कामसूत्र मिथ्या है।
रति कामदेव मिथ्या है,
पांडव जननी कुंती मिथ्या है।
विश्वामित्र काल्पनिक थे या फिर,
मेनका भी कोई मिथ्या है।
पार्वती तप मिथ्या है,
या मीरा की पूजा मिथ्या है।
जब सदा से ही प्रेम पूजा है,
जब सदा से ही कृष्ण को पूजा है।
जब पार्वती ने शिव को पाया है,
जब राधा को कृष्ण भाया है।
जब मीरा ने प्रेम विष पाया है।
जब कामदेव को जलाया है।
कर्ण जब धरा पर आया है।
जब मेनका ने विश्वामित्र को लुभाया है।
तो वो सब क्या था प्रेम ही तो था।
विवाह था या नहीं पर वो प्रेम ही तो था।
तो फिर आज क्यों प्रेम विरोध है?
फिर क्यों मिथ्या प्रतिष्ठा अवरोध है?
ये हमारी ही संस्कृति थी,
ये ही हमारी संस्कृति है।
अगर नहीं ये संस्कृति है,
तो कह दो सब कुछ मिथ्या है,
ये प्रेम, पूजा, इतिहास सब मिथ्या है।
हमारी संस्कृति मिथ्या है?
खुजराहो कामायनी मिथ्या है।
मेघदूत सब मिथ्या है।
प्रेम विरोध, एक हत्या है,
ये कथन भी एक मिथ्या है।
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