सन १९९० में एक दिन : मैं अपने घर को साग सब्जी ले कर आ रहा था कि अपने ही मोहल्ले के दो लड़कों को सिगरेट पीते देखा। राहुल खुद कुणाल को माँ बहन कि गाली दे कर कह रहा था, "अबे *&%^%^$^$$%^$, ये ले एक कश मार और ज़िन्दगी का मजा ले।"कुणाल डरते डरते कश मार रहा था। और छल्ले उड़ा रहा था। मुझे उसकी गाली देना अजीब नहीं लगा क्यूंकि अब तक तो मैंने मान लिया था कि ये तो समाज का हिस्सा है, दोस्ती में गाली चलती है। हर कोई देता है। लेकिन मन में मैंने बस इतना सोचा ' उफ़!!! ये समाज को क्या हो गया है? कहाँ जा रहा है ये ? राम राम।' और फिर मैं वहाँ से आगे बढ़ गया। आज पालक पनीर जो बनना था। बहुत भूख लगी थी।
सन २००० में एक दिन:
मेरे ही पड़ोस कि छत पर खूब हल्ला गुल्ला हो रहा था।
राहुल और कुणाल और उनकी गर्ल फ्रेंड्स सिगरेट के धुएं में शराब के नशे में धुत्त थे। गालियां तो जैसे हेल्पिंग वर्ब बन गयी थीं। वो लोग विदेश से आए थे और लिव इन में थे। मैंने बड़े अचरज से उन्हें देखा, उस वक़्त उनका गाली देना, सिगरेट,शराब पीना तो अजीब नहीं लगा लेकिन लिव इन में रहना अजीब लगा।
और मैंने बस इतना सोचा ' उफ़!!! ये समाज को क्या हो गया है? कहाँ जा रहा है ये ? राम राम।" और दरवाजा बंद कर के सो गया। बहुत थका हुआ था न.
सन २०१० में एक दिन:
अखबार, चोरी, लूट, हत्या, घाटालों, रेप कि घटनाओं से पटा पड़ा था, मैंने पढ़ा, देखा और कोई अचंभा नहीं हुआ। तब तक मैं इसे इतना सुन चुका था और समाज का हिस्सा मान चुका था। बस इतना कहा ' उफ़!!! ये समाज को क्या हो गया है? कहाँ जा रहा है ये ? राम राम।' और टीवी पर पिक्चर देखने लगा, मदर इंडिया आ रही थी बड़े दिनों बाद।
सन २०१३ में एक दिन:
मन बहुत खराब था निर्भया कांड के बाद। आंदोलन को देखा टीवी पर,बहुत कुछ कहा लिखा। हालांकि अब तक बलात्कार की घटनाओं को बहुत ही कॉमन मान चुका था। पर वो कांड बहुत ही नया था और वीभत्स था। गैंग रेप और इतना बुरा। बहुत मन व्यथित था। बस एक ही बात सोचता था "उफ़!!! ये समाज को क्या हो गया है? कहाँ जा रहा है ये ? राम राम।"
सन २०१४ में एक दिन:
अखबार में सोशल मीडिया में आये दिन एक के बाद एक कई निर्भया काण्ड सुनने को देखने को मिलते हैं। अपने ही मोहल्ले कि एक लड़की कि व्यथा जब अखबार में पड़ी तो मन बड़ा व्यथित हुआ। लेकिन अचम्भा नहीं हुआ। आदत पड़ गयी थी ना। मैंने बस इतना कहा ' उफ़!!! ये समाज को क्या हो गया है? कहाँ जा रहा है ये ? राम राम।" और चाय की चुस्की लेने लगा। आज चाय बहुत ही बढ़िया बनी थी इलायची वाली।
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इस ब्लॉग में शामिल हैं मेरे यानी कि अतुल सती अक्स द्वारा रचित कवितायेँ, कहानियाँ, संस्मरण, विचार, चर्चा इत्यादि। जो भी कुछ मैं महसूस करता हूँ विभिन्न घटनाओं द्वारा, जो भी अनुभूती हैं उन्हें उकेरने का प्रयास करता हूँ। उत्तराखंड से होने की वजह से उत्तराखंडी भाषा खास तौर पर गढ़वाली भाषा का भी प्रयोग करता हूँ अपने इस ब्लॉग में। आप भी आन्नद लीजिये अक्स की बातें... का।
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शुक्रवार, 29 मई 2015
लघु कथा 5: उफ़!!! ये समाज को क्या हो गया है? कहाँ जा रहा है ये ? राम राम। --अतुल सती 'अक्स'
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