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रविवार, 31 मई 2015

लघु कथा 7: 'तमाचा ' -अतुल सती 'अक्स'




 " अरे क्या है??? अंधे हो क्या? अनपढ गंवार कहीं के। कहाँ घुसे जा रहे हो भैया? यहाँ कहाँ जगह है?" एक सज्जन चिल्ला रहे थे मेट्रो में। हमेशा ही की तरह आज भी बहुत भीड़ थी। धक्का मुक्की कर के किसी तरह वो सज्जन "Seats reserved of Ladies" महिलाओं के आरक्षित सीट की ओर आकर खड़े हो गए। उम्र अधेड़ अवस्था में पहुँच चुकी थी। सर का चाँद चमक रहा था। ऐनक लगाये काफी ज्यादा पढे-लिखे व्यक्ति लग रहे थे। 

"अरे !!! ये तो राहुल जी हैं।" सुनीता बोली। 
"कौन राहुल जी?" मैंने भी उत्सुकतावश अपनी मित्र सुनीता से पूछ लिया।
"अरे वही राहुल जी!!! हमारे इलाके के काफी नामी गिरामी समाज सुधारक!!! अरे जो 'स्त्री दशा उत्थान' नाम की संस्था चलाते हैं। "
" मैं तो इनकी बहुत बड़ी फैन हूँ। इनका एक लेख पढा था - 'नारी और आज का समाज' उसमे इन्होने बताया था कि किस तरह से आज का समाज में नारी के साथ बदतमीजी होती है। परसों इनका इंटरव्यू भी देखा था जिसमे ये बता रहे थे की आजकल बस, मेट्रो और पब्लिक प्लेसेस में स्त्रिओं के साथ कितनी बदसलूकी होती है किस तरह से लोग बदतमीजी करते हैं। ऐसे लोगों को सबक सिखाना चहिये। बहुत इज्ज़त है इनकी इस शहर की स्त्रिओं में। बहुत मान सामान कमाया है राहुल जी ने!!!"
सुनीता ने ये सब एक ही सांस में कह दिया। पता चल रहा था की वो राहुल जी से बहुत प्रभावित थी। 

मैं भी मेट्रो में रोज ही सफ़र करता हूँ और ये सब देखता हूँ। खुशकिस्मती से आज मुझे सीट मिल गयी थी। अखबार को पड़ते पड़ते मेरा ध्यान बार बार ही राहुल जी की ओर जा रहा था। 
राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर काफी सारी भीड़ उतरी और चढ़ी,जिनमे काफी ज्यादा लड़कियां भी थी। वो सब की सब आरक्षित सीट के पास खड़ी हो गयीं। 
लेकिन मैंने गौर किया तो पाया की अभी कुछ देर पहले भीड़ पर चिल्ला रहे ये सज्जन, अब चुप चाप थे। जबकि इनके आसपास इतनी जगह थी कि ये कहीं और शिफ्ट हो जाते जिससे लड़किओं को दिक्कत नहीं होती, पर ये टस से मस नहीं हुए। मैंने सुनीता की और देखा और उसे बताया कि मैं क्या देख रहा हूँ के तभी एक जोरदार तमाचे की आवाज़ आई। 
"बदतमीज़!!! घर में माँ बहन नहीं हैं क्या? मेट्रो में लड़कियां ही छेड़ने के लिए चढ़ते हो क्या??" एक लड़की राहुल जी पर चिल्ला रहीं थी। राहुल जी का गाल लाल हो चुका था और वो अगले मेट्रो स्टेशन पर चुपचाप उतर गए। 
मैं और सुनीता एक दुसरे का मुहं ताकते रह गए। मन में बहुत सारे सवालों को गुंजायमान करता ये तमाचा अब तक सुनायी देता है जब भी मैं अखबार में, समाचार में तथाकथित पुरुषत्व की स्त्रीत्व के लिए पाशविक हरकतें सुनता हूँ। 

                                                                                   -अतुल सती 'अक्स'

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